जी हां वह कोई फिल्म का दृश्य नही था।आंखों देखी सत्य घटना है कि किरण दूत और टूटी कलम की टीम शहर के दौरे पर थी तो हमने जो देखा वह काफी रोमांचकारी था।
हमारे सामने बहुत तेजी से मोटरसाइकिल सवार आ रहा था।जिसका पीछा पुलिस वाहन कर रही थी ।माजरा भांपते हुवे हमने भी अपनी वाहन तुरन्त वापस मोड़कर पीछे लगा दी।मगर यह क्या की 500 मीटर के बाद पुलिस को छकाता मोटरसाइकिल सवार पुलिस द्वारा लगाये गए बेरियर के नीचे से निकलकर छूमंतर हो गया और वाहन सवार पुलिसकर्मी बुझे चेहरे हाँथ मलते वापस लौट गये।अगर वे चाहते तो मोबाईल अथवा वायरलेस की मदद से आगे पुलिस को सूचना दे सकते थे परन्तु आगे कहीं भी पुलिस की तैनाती नही थी।जिसका पता बाईक चालक एवं पुलिस दोनों को रहा होगा।
संयोग ही कहा जा सकता है कि पखवाड़े पूर्व पुलिस कप्तान संतोष कुमार सिंह ने हमारे सामने ही थानेदार को मोटरसाइकिल से गली गली में पुलिस गश्ती करवाने के लिए समझाईस दी गई थी।मगर चार पहिया वाहन प्रेम के आगे पुलिस कप्तान का आदेश मायने नही रखता फिर अधीनस्थों की सफलता को स्वयं की सफलता बतलाने का मूलमंत्र का सहारा काफी होता है।