छत्तीसगढ़ का रायगढ़ जिला औद्योगीकरण के कारण भारी प्रदूषण की चपेट में है। आँखों में काली पट्टी बांधे और कानों में रुई ठूंस कर बैठे शासन-प्रशासन के नुमाइंदों को यहाँ के निवासियों की करुण पुकार शायद सुनाई नहीं देती है। इसीलिये धड़ाधड़ एक के बाद एक यहाँ स्थापित उद्योगों को विस्तार और नए उद्योगों के स्थापना की अनुमति आसानी से मिल जाती है।
रायगढ़ जिले के गेरवानी सरायपाली से पूंजीपथरा क्षेत्र में दर्जनों उद्योग संचालित हैं। जिनके कारण कभी वनों और जैव विविधताओं से आच्छादित यह क्षेत्र अब धरती का नर्क बन गया है। नियमों को दरकिनार कर संचालित इन उद्योगों के कारण पूरा क्षेत्र भारी प्रदूषण की चपेट में आ गया है। कोयले की कालिख से अटे यहाँ के बचे-खुचे वृक्ष अब पंछियों की बसाहट और चहचहाहट से मरहूम से हो गये हैं। प्रदूषण की मार से क्षेत्र के रहवासी गंभीर बीमारियों से ग्रसित तो हो ही रहे हैं साथ ही इस उद्योगों के भारी वाहनों के कारण असमय काल के गाल में भी समां रहे हैं। लेकिन इनकी गुहार सुनने वाला कोई नहीं है।
आगामी 29 मार्च को मेसर्स सुनील स्पंज के क्षमता विस्तार की जनसुनवाई बंजारी मंदिर प्रांगण में रखी गई है। चूँकि इस उद्योग के आसपास और भी कई बड़े उद्योग स्थापित हैं जिनकी हालिया विस्तार की जनसुनवाई संपन्न हुई है। इन उद्योगों के विस्तार के साथ इस उद्योग का आगामी विस्तार इस क्षेत्र के लिये भारी नुकसान दायक साबित होगा। जर्जर सड़क और लगभग खत्म होती वन सम्पदा के कारण आने वाला समय इस क्षेत्र के निवासियों के लिये काफी भयावह होगा।
कहने को तो इन उद्योगों पर नियंत्रण हेतु पर्यावरण विभाग है किन्तु इस क्षेत्र में स्थापित उद्योगों के द्वारा की जा रही मनमानियों से ऐसा कतई नहीं लगता कि इनको किसी का डर है। कहने को तो पर्यावरण विभाग के नुमाइंदों द्वारा समय समय पर इनका निरीक्षण किया जाता है लेकिन कार्यवाही के नाम पर नोटिस जारी कर खामियों को दुरुस्त कर सूचित करने हेतु समय प्रदान कर दिया जाता है।
चिमनियों को बाइपास कर ऑनलाइन आंकड़ों को निर्धारित मात्रा से कम रख अपनी इमानदारी दर्शाने वाले ये उद्योग खुली हवा में जहरीली गैसें और कोयले कि धूल से भरा काला धुआँ बड़ी बेदर्दी से छोड़ देते हैं। इन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि इनकी इस हरकत से आसपास के रहवासियों के जीवन में कितना प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इन्हें चिंता है तो सिर्फ अपनी तिजोरी भरने की। इस क्षेत्र से गुजरने वाले आम जनता के हितैषी नेता और शासन-प्रशासन के नुमाइंदों को अपनी आँखों से इस क्षेत्र में फैला प्रदूषण भी शायद दिखाई नहीं देता है। ऐसा लगता है की उन्हें यहाँ की हरयाली में जमी कालिख के बजाय अपने जेब में आने वाली हरयाली ज्यादा दिखाई देती है। जिसके कारण लगातार इस क्षेत्र की हरित भूमि का चीरहरण कर एक के बाद एक उद्योग स्थापित होते जा रहे हैं।








