गिरगिट से भी तेजी से कोई रंग बदलती है तो वह होती है। लेखनी जब कि लेखनी एक दर्पण की तरह से होनी चाहिए। जिससे राजनीतिक,प्रशासनिक लोगो को दिखलाया जाना चाहिए। यह तो वही हो गया कि कोई भी राजा,हमे क्या हानि, चित भी मेरा पट भी मेरा स्थल पर मौजूद न होने पर भी ग्राउंड रिपोर्टिंग सा दिखावा करना। विभागों द्वारा जारी विज्ञप्ति जरिया बन गया है। मुख्यमंत्री के आगमन पर स्थानीय मुद्दों पर सवाल करने से सबने पल्ला झाड़कर धान खरीदी बिक्री,पराली जलाने सरीखे प्रश्न पूछना अपने आप को धोखा देना हो सकता है। जिले की खराब सड़को,जलधन योजना,प्रदूषण,ईएसपी, फ्लाईएश, लाल ईंट, चक्रधरनगर रेल्वे ओवरब्रिज, केलो के लिए योजना,यातायात व्यवस्था,अवैध प्लाटिंग,जमीनों की नीलामी आदि सरीखे ज्वलन्त एवं जन हितकारी मुद्दों पर किसी ने भी मुख्यमंत्री का ध्यानाकर्षण न करवाना बहुत कुछ बयां कर देता है। शायद अधिकारियों,जनप्रतिनिधियों, धनकुबेरो की कृपादृष्टि के बोझ तले मुद्दे भी दबकर रह गए। वरिष्ठ कहलाने के शौकीन भी मुख्यमंत्री एवं उच्च शिक्षामंत्री का सानिध्य पाने मेहनत करते,आंखों में धूल झोंकते परिलक्षित हुए। मुद्दे उठाने पर जनप्रतिनिधियों, उद्योगपतियो को रास न आता। जिसकी वजह से माह-सालाना मिलने वाले मेहनताना से वंचित होना न पड़ जाये। यह डर-भय जेहन में जरूर घूमता रहता होगा। तभी तो स्वयंभू तेज तर्रार लोग उपस्थित रहकर जनप्रतिनिधियों, अधिकारीयो पर रुआब कायम करते दिखे। भाजपा का शासन तो भाजपा के पाले में और कांग्रेस का शासन तो कांग्रेस के पाले में रहकर अपनी दुकानदारी चलाने वाले भला किसी को क्या आईना दिखलायेंगे। मुख्यमंत्री के उध्बोधन के दौरान की जाने वाली घोषणाओं पर दर्शकों की तरह तालियाँ पीटना क्या दर्पण दिखलाने का साहस बंटोर सकते है। महज 1 समोसा 1 मीठा खाकर भला कोई कैसे किसी का विरोध कर सकता है। 2000 नगद मिल जाने पर चरण धोकर पीने वालों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। इस तरह के लोग आर्थिक नही अपितु मानसिक रूप से कमजोर हो सकते है, परन्तु स्पष्ट रूप से कागज को काला करने वाले अपनी अलग पहचान बना लेते है।







