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CHANDRAKANT TILLU SHARMA by CHANDRAKANT TILLU SHARMA
9th June 2021
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जितिन लगातार तीन चुनाव हारे, यहां तक उनकी भाभी वार्ड भी नहीं जीत पाईं, बंगाल में प्रभारी बने तो कांग्रेस 44 से 0 पर सिमटी अब भाजपा की है बारी

राहुल गांधी और जितिन प्रसाद काफी गहरे दोस्त रहे हैं। दोनों ने एक ही स्कूल में पढ़ाई भी की।
जितिन के पिता जितेंद्र प्रसाद ने साल 2000 में सोनिया गांधी के खिलाफ पार्टी अध्यक्ष का चुनाव लड़ा था।

उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। इससे ठीक पहले कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। यूपी में कांग्रेस के बड़े नेता और राहुल गांधी के करीबी जितिन प्रसाद ने BJP का दामन थाम लिया। कांग्रेस में जितिन का कद काफी बड़ा था। वह मनमोहन सरकार में मंत्री रहे। हाल में पश्चिम बंगाल और अंडमान निकोबार के प्रभारी रहे। लेकिन कुछ सालों में जितिन का प्रभाव सिमटता चला गया है। यहां तक वह अपने इलाके और अपनी सीट भी नहीं संभाल सके। वे लगातार दो बार लोकसभा और एक बार विधानसभा चुनाव हार गए।

संगठन में भी फेल हुए जितिन
संगठन की जिम्मेदारी में भी सफल नहीं हुए हैं। इनके प्रभारी रहते ही हाल के पश्चिम बंगाल चुनावों में कांग्रेस का पूरी तरह से सफाया हो गया। 44 सीटों से कांग्रेस जीरो पर आ गई। अब यूपी में जितिन की परफॉरमेंस की बात करें तो यहां भी वह कुछ खास कमाल नहीं कर पाए। पिछले तीन बार से लगातार चुनावों में उन्हें करारी शिकस्त मिल रही है। ये ट्रैक रिकॉर्ड इस बात को भी बताता है कि शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी, बरेली समेत रूहेलखंड के इलाके में जो जनाधार उनके पिता जितेंद्र प्रसाद और कांग्रेस ने बनाया था वो लगभग खत्म सा हो गया है।

यहां तक हाल ही में पंचायत चुनाव में शाहजहांपुर के खुटार में वार्ड-एक से पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद की भाभी राधिका प्रसाद खड़ी थीं। लेकिन उन्हें भाजपा प्रत्याशी पूजा मिश्रा ने हरा दिया।

राहुल के फैब-4 का दूसरा विकट गिरा
ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा- ये वो 4 नाम हैं जो सालों तक राहुल गांधी के करीबी रहे। राहुल गांधी की युवा टीम को लेकर जब भी चर्चा होती, इनका जिक्र जरूर आता। लेकिन ये टीम बिगड़नी शुरू हुई 2019 आम चुनाव के बाद, जब ज्योतिरादित्य गुना से लोकसभा चुनाव हार गए। इसके बाद वह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए। हालांकि, इसके बाद हुए उपचुनावों में भाजपा को मध्य प्रदेश में कोई खास फायदा नहीं हुआ। भाजपा हाल में दामोह चुनाव भी हार गई।

जितिन दो बार जीते, लगातार तीन बार चुनाव हार गए

  • 2004 और 2009 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद 2014 लोकसभा चुनाव में जितिन को लखीमपुर खीरी के धौरहरा सीट पर करारी हार मिली। तब चुनाव में वह BJP और बसपा के बाद तीसरे पायदान पर थे।
  • 2019 में भी यही हाल रहा। धौरहरा सीट पर जितिन को 1.62 लाख वोट मिले थे। लेकिन हार गए।
  • 2017 विधानसभा चुनाव में जितिन प्रसाद ब्राह्मण बाहुल क्षेत्र तिलहर से चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन चुनाव हार गए।

राजनीतिक विश्लेषक क्या कहते हैं?

जितिन के ब्राह्मण होने का फायदा BJP को कुछ हद तक ही UP में मिल सकता है

बरेली कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस की प्रोफेसर डॉ. नीलिमा गुप्ता कहती हैं कि जितिन प्रसाद के BJP में शामिल होना कोई चौंकाने वाली बात नहीं है। जितिन लंबे समय से कांग्रेस में उपेक्षित महसूस कर रहे थे। कांग्रेस में बाकी युवा नेताओं की तरह वह भी अपना कोई भविष्य नहीं देख रहे थे। उनके सामने राजनीतिक करियर को बचाए रखने की बड़ी चुनौती थी और इसके लिए BJP से अच्छी पार्टी कोई दूसरी नहीं हो सकती। आज के समय BJP को छोड़कर बाकी दलों में करियर की कोई सिक्योरिटी नहीं है।

BJP का भी रिकॉर्ड रहा है कि वह जल्दी किसी भी नेता को पार्टी में शामिल होने से मना नहीं करती है। सभी को पार्टी की सदस्यता दिला देती है। जितिन के ब्राह्मण होने का फायदा BJP को कुछ हद तक UP में मिल सकता है। अभी उत्तर प्रदेश में BJP के पास प्रो. रीता बहुगुणा जोशी, डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा, MLC एके शर्मा जैसे ब्राह्मण चेहरे हैं। लेकिन इनका प्रभाव पूर्वी और सेंट्रल यूपी में ज्यादा है। अब जितिन के आने से पश्चिम में भी BJP के पास एक बड़ा ब्राह्मण चेहरा हो गया है।

राहुल गांधी और जितिन प्रसाद काफी गहरे दोस्त रहे हैं। दोनों ने एक ही स्कूल में पढ़ाई भी की।

बरेली और आस-पास के 30 सीटें, सभी जगह कांग्रेस की हार
जितिन प्रसाद का सबसे ज्यादा प्रभाव लखीमपुर खीरी, शाहजहांपुर और बरेली की 30 सीटों पर माना जाता है। लेकिन पिछले कुछ सालों से यहां प्रसाद अपना जनाधार खोते जा रहे हैं। लखीमपुर खीरी में दो लोकसभा और 8 विधानसभा क्षेत्र हैं। शाहजहांपुर में 6 विधानसभा और एक लोकसभा सीटें हैं और बरेली में 9 विधानसभा और दो लोकसभा की सीटें हैं। इन सभी सीटों पर पहले 2017 और फिर 2019 में कांग्रेस को बुरी हार मिली थी।

राजीव गांधी के करीबी रहे जितिन के पिता
जितिन प्रसाद कांग्रेस के युवा नेताओं में से एक हैं, उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का करीबी माना जाता रहा है। उनके पिता जितेन्द्र प्रसाद भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी और पी.वी. नरसिम्हा राव के राजनीतिक सलाहकार रह चुके हैं। जितेन्द्र प्रसाद यूपी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं।

जितिन का जन्म 29 नवंबर 1973 को यूपी के शाहजहांपुर में हुआ। उन्होंने अपनी पढ़ाई देहरादून के दून स्कूल से की। यहीं राहुल गांधी ने भी पढ़ाई की थी। फिर जितिन दिल्ली गए और श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से बीकॉम ऑनर्स किया। बीकॉम करने के बाद उन्होंने IMI नई दिल्ली से एमबीए किया। जितिन के दादा ज्योति प्रसाद कांग्रेस के नेता थे और उनकी दादी पामेला प्रसाद कपूरथला के रॉयल सिख परिवार से थीं। फरवरी 2010 में जितिन प्रसाद ने पूर्व पत्रकार नेहा सेठ से शादी की।

पिता ने सोनिया से की थी बगावत
जितिन के पिता जितेंद्र प्रसाद ने साल 2000 में सोनिया गांधी से बगावत कर दी थी। सोनिया के लगातार पार्टी अध्‍यक्ष बने रहने का विरोध करते हुए उनके खिलाफ अध्‍यक्ष पद का चुनाव लड़ा था। हालांकि, उन्‍हें इसमें करारी हार मिली थी। इस चुनाव में सोनिया गांधी को 7,542 वोट और जितेंद्र प्रसाद को महज 94 वोट मिले थे।

जितिन के पिता जितेंद्र प्रसाद ने साल 2000 में सोनिया गांधी के खिलाफ पार्टी अध्यक्ष का चुनाव लड़ा था।

जितिन के राजनीतिक करियर की शुरूआत

  • राजनीतिक करियर की शुरुआत 2001 में हुई। उन्हें भारतीय युवा कांग्रेस का सचिव बनाया गया था।
  • 2004 में उन्‍होंने अपने गृह लोकसभा सीट शाहजहांपुर से 14वीं लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की।
  • 2008 में पहली बार जितिन प्रसाद केंद्रीय राज्य इस्पात मंत्री नियुक्त किए गए।
  • इसके बाद 2009 में जितिन प्रसाद ने धौरहरा सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।
  • 2009- 18 जनवरी 2010 तक सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय संभाला।
  • 19 जनवरी 2011 से 28 अक्टूबर 2012 तक पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय संभाला।
  • 28 अक्टूबर 2012 से मई 2014 तक मानव संसाधन एवं विकास मंत्री रहे।
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●प्रधान संपादक● छत्तीसगढ़ स्तर पर तेजी से आगे बढ़ रहा, रायगढ़ जिले का नंबर 1, रायगढ़ के दिल की धड़कन “✒️टूटी कलम 📱वेब पोर्टल न्यूज़” जिसका कारण आप लोगों का असीम प्रेम है। हम अपने सिद्धांतों पर चलते हैं क्योंकि “इतिहास टकराने वालों का लिखा जाता है। तलवे चाटने वालों का नहीं” इसलिए पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। “बहते हुए पानी में मुर्दे बहा करते हैं” जिंदा लोग बहाव के विपरीत तैरकर किनारे पर आ जाते हैं। पत्रकारिता करने के लिए शेर के जैसा जिगर होना चाहिए और मन में “सोचना क्या जो भी होगा देखा जाएगा” होना चाहिए। आवत ही हरसे नहीं, 👀नैनन नहीं सनेह टिल्लू तहां न जाईए चाहे कंचन बरस मेह ।

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