पूर्व मुख्यमंत्री स्व.अजीत जोगी की कांग्रेस से राजनीति खत्म कर देने वाले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की तिकड़म को सीधे साधे भोले भाले टी एस बाबा भला कहां सक पाएंगे ? 10 जनपथ में गहरी पैठ रखने वाले,रुपयों की ढेरी लगा देने वालो का ही महत्व है दिल्ली दरबार मे,पिछले दिनों एयरपोर्ट से कोरोना वैक्सीन गायब होने पर भी स्वास्थ्य मंत्री को चुप्पी साध लेनी पड़ी थी। ढाई साल के फार्मूले पर आवाज उठाना बाबा को महंगा पड़ गया। एक विधायक ने उनकी चरित्र हत्या करने का प्रयास किया और बघेल ने इस मामले में कोई कड़े कदम न उठाकर दोनो का मेल मिलाप करवा कर वृहस्पति सिंह से माफी मंगवाकर ढाई साल के फार्मूले को दफन करवा दिया. बाबा का सदन से उठकर चले जाना,अपने बंगले में ताला लगवा देना। बाद में बाहर निकलना मीडिया के सवालों का जवाब न देना। यह सब देखकर लग रहा था कि शायद बाबा पार्टी एवं मंत्री पद से इस्तीफा दे सकते है परन्तु बाद में बाबा ने कहा कि हम सब मिलजुल कर एक सांथ कार्य करेंगे। वृहस्पत सिंह ने कहा कि वे भावावेश में आकर गलत बोल गए थे। तो क्या यह भावावेश 3- 4 दिनों तक कायम रहा ? बरहाल इतनी छीछालेदर होने पर भी बाबा का रिवर्स होना उनके पद, गरिमा,रसूक के अनुकूल नही है। जनमानस में बाबा के गद्दी प्रेमी होने का संदेश गया है। बाबा यदि इस्तीफा दे देते तो छत्तीसगढ़ की राजनीति में भूचाल आ सकता था सांथ ही भूपेश बघेल की मनमानियों तले दबे अन्य मंत्रियों में भी स्वाभिमान, खुद्दारी जग सकती थी। टूटी कलम
क्या गुरुवार सिंह ने बाबा सिंह पर इस लिए आरोप लगाए कि कक्का खुश होगा ? शाबासी देगा ? ईनाम देगा ? बाबा सिंह के इस्तीफे के बाद स्वास्थ्य मंत्री पद देगा ? एक बात तो तय हो गई कि बाबा सिंह का ग्राफ गिरकर गुरुवार सिंह का ग्राफ उठ गया है। आने वाले दिनों में गुरुवार सिंह का इस्तेमाल कक्का तुरुप के इक्का के रूप में जरूर करेंगे। 15 साल के भूखे के सामने सुखी रोटी भी डाल देने पर वह टूट पड़ेगा। बाबा जीतकर भी हार गए और पूरी टीम को निराश कर दिए। बाबा पीछे नही हटते तो इतिहास बन जाता। सरकार की मुश्किलें बढ़ जाती मगर सत्ता का मोह किसे बुरा लगता है। सरकार भविष्य में आये न आये तो काहे मंत्री पद ठुकराकर सोनिया सरीखी गलती दुहराये। टूटी कलम
एक बात और है कि यदि बार बार हासिये पर आने की अपेक्षा बाबा एक बार इस्तीफ़ा देने का कांक्रीट डिसीजन ले लेते तो पूरे प्रदेश में उनका कद निश्चित तौर पर बढ़ता और आमजनमानस के मन मे उनके प्रति साफ्ट कार्नर बनता। मगर अब बाबा जहां कहीं भी जाएंगे तो मीडिया का पहला प्रश्न वृहस्पत सिंह एपिसोड पर होगा। बाबा को अब शायद राजनीति से सन्यास ले लेना चाहिए क्योंकि उनके समर्थक,प्रसंशक बाबा को बार बार झुकते,नतमस्तक होते नही देख सकते। सरगुजा की सभी 12 सीट एकतरफा जितने का यह सिला मिल रहा है कि महज 8वी तक शिक्षित वृहस्पत सिंह उन पर सार्वजनिक तौर पर अनर्गल आरोप लगा दिए और बाद में सॉरी बोल कर बरी हो गए। वृहस्पत सिंह बगैर किसी गॉड फादर के इतना बड़ा बयान दे ही नही सकते। ये वही वृहस्पत सिंह है जिसने पूर्व कलेक्टर पाल मेनन पर एवं पूर्व गृहमंत्री रावविचार नेताम पर भी इसी तरह के आरोप लगाए जाने की बाते सामने आई है। टूटी कलम