
🌀 टिल्लू शर्मा ✒️ टूटी कलम रायगढ़ …. हमारे द्वारा पिछले दो माह से लिखे जा रहे समाचार एवं सोशल मीडिया पर डाली जा रही पोस्ट शत प्रतिशत सच साबित होते जा रही है. हमने नामांकन पत्र वापस के संबंध में अपना पूर्वानुमान व्यक्त कर दिया था कि नामांकन पत्र दाखिल कर चुके अभ्यर्थियों के द्वारा कोई समझौता नहीं किया जाएगा. जहां गोपिका गुप्ता पिछले 20 वर्षों से भाजपा की सेवा शायद इस वजह से करती आई है की भविष्य में उनको विधायकी की दावेदारी कभी भी दी जा सकती है क्योंकि उनके पास कोलता समाज का बहुत बड़ा जनाधार है जो कमल चुनाव चिन्ह मिलने पर उनके पक्ष में ही मतदान करता। जिस वजह से गोपिका गुप्ता चुनाव जीत कर विधायक बन सकती थी। मगर समय अनुकूल आने पर भाजपा में दगाबाजी करते हुए सन 2018 में खरसिया विधानसभा चुनाव हार चुके ओमप्रकाश चौधरी को टिकट देकर अग्रवाल समाज,सुनील,उमेश,विकास आदि को किनारे लगा दिया गया. यदि ओम प्रकाश चौधरी गलती से भी चुनाव जीत जाते हैं तो यह तय है कि भविष्य में अग्र – मारवाड़ी समाज से किसी को भी भाजपा से टिकट मिलना दिव्य स्वप्न होगा. भाजपा के बड़े नेताओं के द्वारा गोपिका गुप्ता को तरह-तरह के प्रलोभन देकर नामांकन पत्र वापस लेने पर दबाव बनाया गया परंतु गोपिका टस से मस नहीं हुई और ओपी चौधरी को हराने का संकल्प ले लिया. जबकि वे २ बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीतकर भाजपा को समर्थन दे चुकी है. इस तरह से देश की सबसे बड़ी राजनीति पार्टी कहलाने वाली भाजपा ने मारवाड़ी समाज को धोखे में रख कर कर्मठ कार्यकर्ताओं तक को भी धोखा देकर खरसिया विधानसभा चुनाव हार चुके व्यक्ति को टिकट दे दिया गया. जिसका दुष्परिणाम मतदान से एक सप्ताह पूर्व दिखने लगेगा.जब कट्टर भक्त कहलाने वाले भाजपाई मतो में सेंध लगाने शुरू करेंगे.
शंकर लाल अग्रवाल ऑटो चलाते दिखेंगे शहर में स्वयं को कट्टर कांग्रेसी साबित करने पर तुले जिला कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष शंकर लाल अग्रवाल स्वयं को रायगढ़ विधायक स्थापित करने में बेकार की ऊर्जा व्यर्थ करने में तूले हुए थे. जिनको इस बात का घमंड था कि वे धनबल के जोर पर वर्तमान विधायक प्रकाश नायक की टिकट कटवाने में सफल हो जाएंगे किंतु उनकी स्वयं की टिकट कांग्रेस से कट गई. चुनाव के पश्चात शंकर का कांग्रेस से निलंबन होना तय है और भविष्य में वापसी होनी असंभव है क्योंकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को बगावती लोग पसंद नहीं है. वैसे भी कोषाध्यक्ष की कोई पूछ परख पार्टी में नहीं होती है. यह पद एक टुकड़ा डालने के समान होता है. सबसे मजेदार बात तो यह है की शंकर लाल अग्रवाल को मारवाड़ी समाज के लोग ही नहीं जानते पहचानते हैं कि यह कौन है ? कहां से आया है ? कब आया है ? क्या कार्य करता है ? कुछ मीडिया वालों को 500,1000 रुपए देकर स्वयं को हाईलाइट करने में बड़ी बात समझा करता रहा. जिस वजह से कांग्रेस संगठन में उनकी छवि धूमिल होती चली गई. देखना यह है कि शंकर लाल अग्रवाल अग्र समाज के कितने वोट पाने में सफल होते हैं. वैसे शंकर लाल अग्रवाल अपनी जमानत भी नहीं बचा पाएंगे यह बात तय है.






