नंबर वन की तरफ तेजी से बढ़ रहा *टूटी कलम समाचार* पत्रकारिता करना हमारा शौक है, जुनून है, आदत है, दिनचर्या है, कमजोरी है,लगन है,धुन है, पागलपन है ,पत्रकारिता करना हमारे पेट भरने का साधन नहीं है, और ना ही ब्लैकमेलिंग, धमकी,चमकी,देकर, विज्ञापन के नाम पर उगाही,वसूली करने का लाइसेंस मिला हुआ है, संपादक टिल्लू शर्मा लेखक, विश्लेषक, कवि,व्यंगकार,स्तंभकार, विचारक, माता सरस्वती का उपासक,परशुराम का वंशज,रावण भक्त,कबीर से प्रभावित,कलम का मास्टरमाइंड, सही और कड़वी सच्चाई लिखने में माहिर, जहां से लोगों की सोचना बंद कर देते है हम वहां से सोचना शुरू करते है, टिल्लू शर्मा के ✍️समाचार ज्यों नाविक के तीर,🏹 देखन म छोटे लागे, घाव करे गंभीर, लोगों की पहली पसंद टूटी कलम समाचार बन चुका है, सरकार एवं जिला प्रशासन का व्यवस्थाओं समस्याओं पर ध्यान आकर्षण करवाना हमारा पहला कर्तव्य है
*हिंदुस्तान की सियासत इन दिनों जिस मोड़ पर खड़ी है, वहां हर चर्चा का केंद्र प्रधानमंत्री की कुर्सी बन चुकी है। 75 वर्ष की उम्र और खुद के बनाए “सेवानिवृत्ति नियम” पर आकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खामोश दिख रहे हैं। यह वही मोदी हैं जिन्होंने कभी युवाओं को अवसर देने की बात कहकर अपनी ही पार्टी के दिग्गजों को किनारे लगाया था। आज जब खुद पर वही नियम लागू होता है तो वे पलटकर उसी नियम को भूलते दिख रहे हैं। पार्टी के भीतर से उठ रही आवाज़ें बता रही हैं कि कहीं न कहीं भाजपा परिवार में असमंजस और खींचतान गहराने लगी है।
मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने लंबे समय तक एकतरफा राजनीति की, विपक्ष को कमजोर किया और पूरे देश पर “एक चेहरे” की राजनीति थोपी। लेकिन अब सवाल उठता है कि क्या मोदी ने कोई “राजकुमार” तैयार किया? क्या भाजपा में ऐसा चेहरा है जो उनकी विरासत को संभाल सके? पार्टी के भीतर कतार में खड़े कई नेता इस जिम्मेदारी को निभाने में सक्षम जरूर दिखते हैं, लेकिन मोदी की कार्यशैली और उनके व्यक्तित्व का साया इतना बड़ा है कि कोई भी खुलकर सामने नहीं आ पा रहा। यही भाजपा के लिए सबसे बड़ा संकट है।
जनता का मिजाज भी तेजी से बदल रहा है। अब केवल जुमलों से काम नहीं चलने वाला। पढ़ा-लिखा, सवाल-जवाब में माहिर और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर बेबाक राय रखने वाला नेता जनता की चाहत है। पत्रकारों के सामने चुप्पी साधने और “मन की बात” में एकतरफा संवाद से अब जनता ऊब चुकी है। पड़ोसी देशों की राजनीति का असर भी भारत पर दिखने लगा है। पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में सत्ता के बड़े बदलावों ने भारतीय मतदाता को भी सिखा दिया है कि एक ही चेहरा हमेशा लोकतंत्र की मजबूती नहीं होता।
मोदी के आलोचक अब उन्हें “हिटलरशाही” की ओर जाते नेता करार दे रहे हैं। पार्टी के भीतर यह डर गहराता जा रहा है कि कहीं एकाधिकार की यह राजनीति भाजपा को भारी नुकसान न पहुँचा दे। राहुल गांधी का “भारत जोड़ो” से लेकर “न्याय” तक का एजेंडा धीरे-धीरे जनमानस को झकझोरने लगा है। खासकर “वोट चोर गद्दी छोड़” जैसे नारे ने भाजपा की नींद हराम कर दी है। कांग्रेस अब बार-बार जनता के बीच यह संदेश फैला रही है कि मोदी का इस्तीफा, राष्ट्रपति शासन और गठबंधन ही आने वाले दिनों का विकल्प है।
मोदी के लिए यह समय बड़ा निर्णायक है। अगर वे सचमुच एक “अच्छे नेता” की तरह खुद पर बनाए नियमों का पालन करें और पार्टी की बैठक में नया प्रधानमंत्री घोषित करें, तो यह न केवल भाजपा बल्कि लोकतंत्र के लिए भी सकारात्मक कदम होगा। इससे यह संदेश जाएगा कि भाजपा एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि संगठन की पार्टी है। लेकिन अगर वे अपनी ही बनाई मर्यादाओं को तोड़ते हैं तो आने वाले समय में यह भाजपा के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है।
देश की सड़कों और चौक-चौराहों पर राहुल गांधी की पदयात्राओं ने नए राजनीतिक माहौल को जन्म दिया है। परिवर्तन की हवा बह रही है। जनता अब खुलकर सत्ता से सवाल पूछ रही है। राहुल गांधी को लोग अब “राजकुमार” की बजाय “संघर्षशील नेता” की तरह देखने लगे हैं। अगर यह लहर जारी रही तो सचमुच भाजपा औंधे मुंह गिर सकती है।
यहां कटाक्ष के तौर पर कहा जाए तो मोदी के “झोले” में कांग्रेस समेटने का सपना अगर कभी पूरा होना था, तो वही अब भाजपा के लिए भारी बोझ बन सकता है। कांग्रेस लगातार उस झोले से बाहर निकलकर नए जोश के साथ मैदान में उतर आई है। अगर नरेंद्र मोदी समय रहते सत्ता हस्तांतरण का साहस नहीं दिखाते तो इतिहास उन्हें लोकतंत्र की परंपरा तोड़ने वाले नेता के रूप में याद करेगा।
आज जरूरत एक ऐसे प्रधानमंत्री की है जो न केवल अपनी पार्टी बल्कि देश की विविधता, जनता की आकांक्षाओं और लोकतंत्र की मर्यादा का सम्मान करे। सत्ता परिवर्तन की आहट साफ सुनाई दे रही है। मोदी को तय करना होगा कि वे इस आहट के बीच अपने “झोले” से कांग्रेस को समेटकर राजनीति का आखिरी दांव खेलते हैं या फिर एक गरिमामय विराम लेकर भारतीय लोकतंत्र में उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
टिल्लू शर्मा की कलम से









