रायगढ़— शोले फिल्म का डायलॉग तो याद ही होगा। हमारी जेल में सुरंग यानि कि बगावत,खून की नदियां मतलब साफ है कि जेल की बैरकों में परिंदा भी पर नही मार सकता तो वहां कोरोना का वायरस कैसे पहुंच गया ? क्या रसूखदार बंदियों की वजह से,जिन्हें सारी सुविधाएं करा दी जाती है जो कि एक पाव शराब के स्थान पर एक बोतल नजराना देने पर,चिकन की लेग पीस भी उपलब्ध हो सकती है मगर रान और कलेजी खिलाने पर,पान पाउच,बीड़ी सिगरेट,लालपट्टी भी मिलेगी मगर कुछ नगद जमा करवाने पर,कैदियों से चेम्बर आराम से बैठकर गप्पीयाया जा सकता है। यदि जेल के बाबा तिवारी को खुश रखा जाये तो,तिवारी के चेहरे की लालिमा बतला देती है कि जेल का प्रहरी बनना कितना लालिमायुक्त कार्य है। शराब पानी या प्लास्टिक की बोतलों में भरकर,मांस,मटन,पाउच,बीड़ी,सिगरेट, गुड़ाखु,तंबाकू एक तय समय पर नियत स्थान पर जेल की चारदीवारी के भीतर फेंकना पुरानी परंपरा रही है परन्तु लाकडाउन काल मे प्रहरी की कमर 36 से 42 हो जाना भी कम आश्चर्यजनक नही है। जिस पर सिटी मजिस्ट्रेट,कलेक्टर,पुलिस अधीक्षक की निगाहें रहना नितांत आवश्यक है। क्रमशः सामानों के अंदर फेकने के वीडियो सहित