रायगढ़——– शायद महिला एवं बाल विकास विभाग एक ऐसा विभाग है जिसमे किसी पुरुष का अधिकारी होना किसी भी दृष्टि से उपयुक्त नही माना जा सकता। जैसा कि नाम से ही लग जाता है कि उक्त विभाग में कोई महिला अधिकारी होगी परन्तु कुर्सी पर किसी पुरुष को बैठा देखकर अचंभित होना स्वाभाविक है। इस विभाग का कार्य बच्चो एवं महिलाओं को लेकर काफी संवेदनशील होता है। जिसे केवल कोई माता-महिला ही समझ सकती है। मसलन बच्चो के सुपोषण,दुग्धपान आदि को कोई महिला ही अच्छे से समझ एवं उनकी माताओं को समझा सकती है। बच्चो के खानपान के विषय मे माता से बेहतर कौन समझ सकता है। माता का दूध शिशुओं के लिए अमृत समान होता है। इसलिए माताएँ अपने शिशुओं को अपना दूध पिलाये इस बारे में कोई महिला ही अन्य महिला को समझा सकती है और यदि इस बारे में कोई पुरुष अन्य पराई महिलाओं को कैसे समझा सकता है और यदि समझाये भी तो महिलाएं उस पुरुष के सामने लज्जित महसूस कर सकती है। दूध का कम बनना, ज्यादा बनना, नही बनना इन समस्याओं को कोई भी महिला किसी पराये पुरुष को कैसे बतला सकती है।
वहीं सेनेटरी पैड का निर्माण एवं उसका उपयोग,निपटान के विषय मे कोई पुरुष अधिकारी महिलाओं,युवतियों को किस तरह से समझा सकता है। कोई भी महिला नही चाहेगी की कोई पराया पुरुष उन्हें इस विषय पर किसी भी तरह की जानकारी या समझाइश देवे। माहवारी की जानकारी कोई महिला किसी से साझा कर सकती है। गर्भ निरोधक गोलियां एवं उपाय के विषय में महिला किसी पुरुष से कैसे जानकारी ले सकती है।
बच्चो के खानपान के विषय मे कोई भी माता,महिला ही अच्छे से समझ सकती है। माता बच्चो की हर जरूरत को समय के अनुसार समझ जाती है। जिससे पुरुष कोसो दूर होता है। गर्भवती माताओं को गर्भावस्था से लेकर शिशु उतपन्न होने एवं बाद कि तमाम बातें कोई महिला ही भली भांति समझ एवं समझा सकती है।
सरकार को चाहिए कि उक्त संवेदनशील विभाग में किसी महिला को ही अधिकारी बनाकर नियुक्त करे ताकि जैसा विभाग का नाम वैसा काम भी होना चाहिए। इस विभाग में अधिकतर बच्चो एवं महिलाओं के उत्थान के लिए कार्य योजना बनती है। इस विभाग के अंतर्गत आंगनबाड़ी केंद्र,महिला स्वायत्ता समूह आते है। जिसमे महिलाएं ही कार्य करती है। अतः महिलाओं के बीच मे किसी पुरुष अधिकारी का होना उचित नही होना चाहिए। अधिकारी शासन की योजनाए समझाकर महिलाओं का आर्थिक,मानसिक शारीरिक शोषण भी कर सकते है।
सरकार का स्पष्ट निर्देश है कि महिला छात्रावास, महिला महाविद्यालय, कन्या शाला,नर्सिंग होम, बसों में,कंडक्टर,गार्ड आदि महिला ही होनी चाहिए तो महिला एवं बाल विकास विभाग में महिला अधिकारी क्यो नही होनी चाहिए । जो अधिकारी शर्ट-पेंट इन कर,परफ्यूम छिंट कर,पाउडर आदि लगाकर,कंघी कर महिलाओं के बीच उपस्थित होता हो उसके विषय मे किसी की क्या राय हो सकती है। यह सब दबी जुबान से कर कोई कह सकता है।
विभाग के ऑफिस चेंबर में महिलाओं का ही आना जाना लगा रहता है। ऐसे में पुरुष अधिकारी महिलाओं से किस तरह की बांते करते होंगे। इसे कौन जान सकता है। हो सकता है कि किन्ही महिलाओं को सरकार की योजनाओं का भरपूर लाभ अन्य महिलाओं के लाभ की कटौती कर ज्यादा दिया जा सकता है।
वैसे यदि कलेक्टर चाहे तो उक्त विभाग की जिम्मेदारी किसी महिला को सौप सकते है। आजकल महिला डिप्टी कलेक्टरो,अधिकारियों की कमी शायद कहीं नही होगी। यदि पुरुष सीधे इस पद पर चुनकर आते है तो उनको बस्तर,जगदलपुर,अबूझमाड़ आदि क्षेत्रों में पदस्थापना दी जानी चाहिए। जहां महिलाओं एवं बच्चो को अच्छी शिक्षा एवं परवरिश मिल सकती है।