पेंड्रा,गौरेला, मरवाही——- जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है।वैसे वैसे सत्तारूढ़ कांग्रेस के हथकंडे देश भर में कुख्यात हो रहे है। लोकतंत्र में चुनाव लड़ने का अधिकार सामान्य जनमानस को भी है परन्तु पदारूढ़ होने का यह मतलब नही की कानूनी अड़चन का हवाला देकर गैर जिम्मेदाराना तरीके से चुनाव लड़ने से वंचित कर दिया जाये। जब तक जोगी जी कांग्रेस से चुनाव लड़ते रहे तब तब कांग्रेसी लोग ही उनके प्रस्तावक बनते रहे। तब जाति समीकरण का सवाल नही उठाया गया।सोनिया गांधी के हिंदुस्तानी होने के सवाल भाजपा द्वारा उठाते जाते रहे है परन्तु उन्हें षडयंत्र कर चुनाव लड़ने से वंचित नही किया गया। इसी तर्ज पर अब कांग्रेस प्रदेश के कद्दावर राजनीतिक परिवार जोगी पर जाति सम्बंधित अड़चन लगाकर चुनावी नामांकन खारिज करवा रही है। जिससे कांग्रेस की छवि देश स्तर पर तो खराब हो ही रही है मगर साथ ही चुनाव आयोग की विश्वसनीयता भी खत्म होती जा रही है। अब लगने लगा है कि ई वी एम मशीनों पर जो शक किया जा रहा था। वह सही था।
किसी समय स्व.अजित जोगी ए आई सी सी के प्रवक्ता हुआ करते थे। वे स्व.राजीव गांधी के किचन केबिनेट के सदस्य माने जाते थे। स्व.अर्जुनसिंह के खरसिया चुनाव में जीत का श्रेय एकमात्र जोगी जी को कुशल चुनाव संचालन के लिए दिया गया था। वही उन्हें उपकृत कर रायगढ़ लोकसभा से प्रत्याशी बनाया गया था। कांग्रेस पार्टी के प्रति ज्यादा वफादारी करना उनको भारी पड़ गया एवं प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनाने के फेर में उनको पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखला दिया बावजूद इसके उन्होंने अंतिम समय तक कांग्रेस,सोनिया, राहुल के विरुद्ध एक टिप्पणी तक नही की प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल ने जोगी-गांधी परिवार को एक नही होने देने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रखा था। जिस तरह से माँ बेटे ने मिलकर कांग्रेस का वजूद खत्म करने का ठान लिया है।इसी तर्ज पर प्रदेश से कांग्रेस के सफाये का भूपेश टीम ने ठान लिया है। गत विधानसभा चुनाव में जोगी जनता कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन कर खुद के दम पर 8 विधायक जितवाये थे जबकि 15 वर्षो से पदारूढ़ भाजपा को महज 15 सीट ही मिल पाई थी। 14 स्थानों पर जोगी कांग्रेस 2 रे नम्बर पर रही थी। इस गणित के हिसाब से जोगी कांग्रेस ने प्रदेश में अपनी जड़े मजबूत कर ली है।
कहते है राजनीति में शत्रुता स्थिर नही होती परन्तु यह देखा जा रहा है कि भूपेश बघेल ने फिल्मों की तरह शत्रुता पीढ़ी दर पीढ़ी बना ली है। वे किसी भी कीमत पर नही चाहते कि जोगी परिवार का कोई सदस्य कांग्रेस में आ सके या चुनाव जीत सके। सन 2001,2003,2008,2013 में जोगी परिवार के लगातार जीत हासिल करने पर मरवाही सीट जोगी परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती है। स्व.अजीत जोगी एवं उनके पुत्र अमित जोगी यहां से विधायक चुने गए है एवं अमित जोगी प्रदेश में सबसे ज्यादा वोटो से जीतने वाले योद्धा है। यह सब आंकलन करने पर दाऊ को महसूस हो गया कि चुनावो में मरवाही क्षेत्र से जोगी परिवार के किसी भी सदस्य को हरा पाना नामुमकिन है। इसलिए फर्जी जाति सम्बन्धी कार्ड खेल दिया गया। जिसे निर्वाचन आयोग ने मानकर अपनी साख पर बट्टा लगवा लिया गया। जब लगातार 3 चुनाव लड़कर तथाकथित फर्जी आदिवासी जीत चुके है तो क्या उस वक्त वे फर्जी आदिवासी न थे ? तब इनकी जाति को लेकर प्रश्न क्यो नही उठाये गये। 3 बार चुनाव जीतने वाले चौथी बार फर्जी कैसे बन गए ? क्या उस समय इन लोगो का जाति प्रमाणपत्र नही जांचा गया था ? जोगी जी आदिवासी थे तो उनके पुत्र अमित जोगी भी आदिवासी हुए। अमित जोगी की शादी ऋचा जोगी से हुई तो वे अपने पति की जाति वाली हुई। यह नियमावली ,वंशावली होती है। अब ये अचानक से गैर आदिवासी कैसे हो गये ? इनकी जाति चुनाव के समय कैसे बदल गई? इस बात का फैसला अब माननीय न्यायालय करेगी। बरहाल मरवाही के घटनाक्रम को देखकर लग रहा है कि यहां से कांग्रेस को अपनी जमानत बचाने के लिए संघर्ष करना होगा। जोगी जी को चाहने वालो की कमी नही है और मरवाही के मतदाताओं के दिलो में भी जोगी जी बसते है। इस दफे भले जोगी परिवार को चुनाव से वंचित कर दिया गया हो परन्तु आगामी 2023 के होने वाले विधानसभा चुनाव में अमित जोगी एवं ऋचा जोगी की सामान्य सीट से भी जीत सुनिश्चित हो गई है।
जोगी परिवार का नामांकन निरस्त करने पर मरवाही के हालात बदल सकते है। शांतचित्त, धीर गम्भीर समझे जाने वाले आदिवासी यदि आक्रमक रूप अपना ले तो हालात काबू में करना मुश्किल हो सकता है। वैसे भी प्रदेश में जोगी जहां खड़े वहां मंत्री से बड़े का पद रखते है।