✒️ टिल्लू शर्मा टूटी कलम रायगढ़ …रायगढ़ के तहसील कार्यालय में कार्यपालिक दंडाधिकारी (तहसीलदार) के साथ मारपीट करना और वह भी उच्च शिक्षित अधिवक्ताओं के द्वारा जिसे बेहद शर्मनाक कृत्य ही कहा जायेगा। तहसील कार्यालय का बेहद गर्म माहौल देखकर सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि यदि घटना के वक्त तहसीलदार सुनील अग्रवाल का आमना-सामना हो जाता तो आज शहर कर्फ्यू के साये में होता। सुनील अग्रवाल के साथ कोई भी अप्रिय घटना घटने से कतई इंकार नही किया जा सकता। वकीलाक्रोश देख कर ही समझ आ जाता है कि वे लोग मारपीट करने पूर्व नियोजित होकर तहसील कार्यालय पहुंचे थे और उस वक्त कोई भी अधिकारी सामने आ जाता उसके साथ भी यही घटना घट सकती थी ? टूटी कलम
बेवजह से बैकफुट पर आ गया अधिवक्ता संघ…अधिकारी,कर्मचारी से मारपीट वह भी ड्यूटीरत एवं कार्यालयीन समय मे वह भी कार्यालय परिसर में घुसकर करना बहुत बड़ा अपराध है। यदि वकीलों के स्थान पर कोई अन्य रहता तो शायद वह अपने पैरों पर खड़ा भी नही हो पाता। पुलिस वाले भी वकीलों के साथ इतनी नरमी से इसीलिए पेश आये। पूरे प्रदेश में मारपीट का वीडियो वायरल हो चुका है। जो सच्चाई को बयां कर रहा है एवं दोषी कुछ वकीलों को मान रहा है एवं अन्य अधिवक्ता दोषियों की पैरवी कर बचाव कर अपनी छीछालेदर करवा रहा है।
हंसी उड़वाने वाला बयान…अधिवक्ता संघ अपने जेल दाखिल साथियों के लिए नही अपितु भ्र्ष्टाचार के विरूद्ध लड़ाई लड़ रहा है। यह जिसने भी सुना वह हंस रहा है क्योंकि भ्र्ष्टाचार की पहली सीढ़ी पर चढ़ने के बढ़ावा कौन देता है। यह किसी से नही छिपा है। नामांतरण,सीमांकन,रिकार्ड निकलवाने,भूअर्जन,मुआवजा आदि के अधिकतर मामले ग्रामीण क्षेत्रों से आते है और जो भी लेनदेन तय होता है। वह किसके मॉध्यम से होता है। यह सर्वविदित है। अधिकारियों से तयशुदा रकम जब मध्यस्थ गडाम कर लेते तो अधिकारियों की नाराजगी होनी जायज है। 1 से लेकर 511 तक की धाराओं में लिप्त लोगो की जमानत,बाइज्जत बरी करवाने की रकम किसके द्वारा तय की जाती है। उस समय यह क्यो महसूस नही होता कि भारी भरकम रकम लेकर कार्य करवाना भ्र्ष्टाचार की श्रेणी में आता है।