रायगढ़—- क्या मनुष्य के लिए मांस खाना इतना जरूरी हो गया कि तालाबंदी (अघोषित कर्फ्यू ) में भी इसे अति आवश्यक वस्तु मानकर सुबह 5 से 9 तक बेचने की रियायत दे दी गई.तो फिर शराब में क्या खराबी है कि उसे बंद रखा जा रहा है. वैसे भी मांस खाना तभी भाता है जब पहले से आंत में अल्कोहल चला जाये.आंत में गया अल्कोहल में मांस को पचा देने के अद्भुत गुण होते है.
जैसा खाओगे अन्न,वैसा रहेगा मन यह सत्य है कि मांस खाने वाले प्राणी हिंसक,क्रूर होते है जबकि सादा भोजन करने वाले शांत,शालीन होते है मगर जब ये उत्तेजित हो जाते है तो आपे से बाहर हो जाते है यह भी शास्वत सत्य है .शेर मांसभक्षी तो हांथी फलाहारी, चूहा शाकाहारी तो कुत्ता मांसाहारी,गाय घास प्रेमी तो गिद्ध की निगाह सड़े मांस पर आदि हजारो प्रजाति है जिनकी तुलना कर सच्चाई जानी जा सकती है,उनका स्वभाव जाना जा सकता है.चिकन,मटन,मच्छी में तेज मसालों का उपयोग होता है.जिसकी वजह से सीने की जलन,उच्च रक्तचाप, हृदयरोग,मानसिक तनाव,गैस,अपच,अनिद्रा जैसी आदि बीमारियों का जन्म होता है.जबकि सादा भोजन करने वाले इसके ठीक विपरीत होते है जो चैन से सोते है.
अब जब लोगो की मांस खाने की आदत लगभग छूट गई है। तब फिर से आदत डालना कहां का न्याय है.पोल्ट्री फार्म की जगह डेयरी फार्म खोलने के लिये बेरोजगारों को प्रेरित किया जाना चाहिए. गांय,भैस,बकरी जिंदा रहते तो उपयोगी रहते है और मरने के बाद भी उपयोगी बन जाते है.इनकी हर एक चीज मनुष्य के लिऐ फायदेमंद होती है जबकि मुर्गा,बकरा खाने पर मांसभक्षी का ही टीका लगता है.