यूं तो कहने को पूरा देश कोरोना नाम के संक्रमण से लड़ रहा है मगर यथार्थ के धरातल पर उतर कर देखा जाये तो पुलिस विभाग ही एक ऐसा विभाग है जो शुरुआती दौर से ही लगातार कोरोना से जूझ रहा है। जहां पूरे देश मे लाखो,करोड़ो लोग क्वारेंटिन सेंटरो,होम आइसुलेशनो में रहकर अपना एवं अपने परिवार का बचाव कर रहे है वहीं पुलिस वाले जान की परवाह न करते हुऐ। क्वारेंटिन सेंटरो की देखभाल,मरीजो को अस्पताल भेजने के साथ ही पैदल,वाहनों से,अन्य माध्यमो से अपने घर लौट रहे प्रवासी मजदूरों की तीमारदारी में चौबीसों घँटे लगे हुए है। मजदूरों के लिए भोजन,पानी,चाय,बिस्किटचप्पल,जूतो की व्यवस्था के साथ ही उनको उनके ठिकाने भिजवाने का कार्य भी पुलिस ही कर रही है। जबकि प्रवासी मजदूरों के साथ ही बाहर से आने वालों लोगो की सारी व्यवस्था स्वास्थ्य विभाग, नगर निगम,खाद्य विभाग,परिवहन विभाग, शिक्षा विभाग की होनी चाहिए। पुलिस का कार्य शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए होता है न कि बाहर से आने वालों की मेहमानवाजी की, बाजार खुलवाना,बंद करवाना,सोशल डिस्टनसिंग,मास्क लगवाने का पालन करवाना सारा कार्य पुलिस ही कर लेगी तो अन्य विभागों का क्या ओचित्य है।

वर्तमान में जो श्रमिक स्पेशल ट्रेनो के माध्यमो से जो मजदूर परिवार देशभर के राज्यो से रायगढ़ पहुंच रहे है। उनको पिक एन्ड ड्रॉप पुलिस कप्तान संतोष कुमार सिंह के निर्देश पर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अभिषेक वर्मा,नगर पुलिस अधीक्षक अविनाश सिंह,ठाकुर के मार्गदर्शन में चारो थाने के प्रभारी एस एन सिंह,अमित शुक्ला,विवेक पाटले,युवराज तिवारी कर रहे है। भले ही ये लोग अपने रिश्तेदारों को रेलवे स्टेशन लेने एवं छोड़ने न जाते हो परन्तु शहर में संक्रमण न फैल पाये इस के लिये ये पुलिस के अधिकारी फिलहाल “श्रमिक देवो भवो” का पालन कर पुलिस विभाग का नाम रौशन कर रहे है।

यदि कोरोना वायरस से संक्रमण फैलने का सबसे बड़ा खतरा कोई मोल ले रहा है तो वह पुलिस के जवान ही है। जो 80 दिनों से शहर के चौक चौराहों,बाजारों,प्रदेश की सीमा,जिले के बॉर्डर पर गर्मी ,लू के थपेड़े,आंधी,तूफान,बारिश को सहते हुऐ। आम जनमानस की जानमाल की सुरक्षा में 24 घँटे लगे हुऐ है। इन सब कार्यो के बावजूद शांति व्यवस्था के साथ अपराधों पर नियंत्रण रखकर गुनाहगारों पर कार्यवाही करना भी इनके लिए जरूरी रहता है। अगर देखा जाये तो इस कोरोना के संकटकाल मे जितनी मुसीबते एवं मानसिक तनाव जितना पुलिस वालों को भुगतना पड़ रहा है उतना तो देश,प्रदेश के मुखियाओं एवं जनप्रतिनिधियों को कौड़ी मात्र भी नही भुगतना पड़ रहा है। सब पूरा शहर चादर तानकर सोता है तब ये पुलिस वाले आगन्तुको की सेवा में एवं चौकसियो में लगे रहते है। इतना सब करने के बाबजूद भी प्रत्येक गलतियों का ठीकरा पुलिस के सर पर फोड़ा जाना कहां तक उचित रहता है।







