🌀टिल्लू शर्मा ✒️टूटी कलम रायगढ़ …. भादो मास के शुक्ल पक्ष के बाद रूढ़ीवादी विचारधारा के अंतर्गत परिवार के कई मृतकों की बिदाई करने की खातिर धनाढ्य परिवारों के द्वारा बाहर से मोटी रकम लेकर एक सप्ताह तक गीता के अध्यायों का फिल्मी अंदाज में श्रवण करने वाले श्रद्धालुओ को आकर्षित करने की खातिर इस अंदाज से कथा का वाचन किया जाता है जिसका संबंध भगवत गीता से दूर-दूर तक नहीं होता है। फिल्मी गानों की धुनों पर शेरो शायरी करने के अंदाज में भागवत ज्ञान बांटा जाता है कथा वाचक के इस अंदाज के श्रोतागण तालियां बजाने एवं झूमने नाचने लगते हैं। जिस कथा वाचक की कथा सुनकर जितने अधिक श्रोता झूमते,नाचते हैं। उसे कथा वाचक का पारिश्रमिक (मेहनताना) उतना ही अधिक होता है। आयोजन कर्ताओं के द्वारा कथा वाचक की खातेदारी में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती दूध,घी, मक्खन,मिश्री,मिठाइयों,फल फ्रूट, 56 प्रकार के व्यंजन खिलाकर खिलाकर कथावाचक के वजन में बढ़ोतरी कर दी जाती है। कथावाचक के बैठने के स्थान को कुछ इस तरह से सजाया जाता है मानो वह भगवान से कम नही है। नर, नारी, बच्चे, बूढ़े,जवान सभी कथावाचक के चरणों को छुपाकर स्वयं को धन्य एवम पापो से मुक्त हो जाना मानते हैं।
ब्राह्मणों के हक अधिकार को छीन लिया है कलाकारी अदाकारी से कथावाचकों ने… धीरे-धीरे करके चालक किस्म के लोग स्वयं को कथावाचक बतलाने लगे हैं। स्वयं के नाम के आगे श्री श्री 1008 कथावाचक,पंडित,शास्त्री,आचार्य, लिखने वाले यह नहीं बताया करते कि वे किस जाति से संबंधित है होते हैं। शास्त्रों के अनुसार भगवत गीता का फल केवल ब्राह्मणों के श्रीमुख से सुनने पर ही असर कारक होता है और प्राप्त होता है।अन्य किसी के मुख से कथावाचन सुनने पर ऐसा महसूस होता है मानो किसी फिल्म की स्टोरी सुनाकर गाना गाया जाता हो. इसका उल्लेख भगवत गीता में स्पष्ट रूप से किया गया है कि ब्राह्मण के मुख से गीता का पाठ सुनने पर पिछले कई जन्मों के पास उतर जाया करते हैं। इसलिए भागवत ज्ञान सप्ताह के नाम पर कोई कितना बड़ा भी आयोजन कर ले परंतु फल की प्राप्ति नही होती है।
पिंडदान,अर्पण,तर्पण सभी व्यर्थ हो जाते है..… भागवत ज्ञान सप्ताह के बाद करने कुटुंब के सभी लोग पितृ मोक्ष के लिए बिहार के गया जाकर पिंडदान,अर्पण, तर्पण,पूजा,पाठ, यज्ञ आदि करके वापस आते हैं और पार्टी रूपी भंडारा का आयोजन करते है।इन सब कार्यों में लाखो रुपए खर्च इसलिए कर दिए जाते है कि जिनके निधन हो चुके हुए रहते है। उनका प्रति वर्ष किया जाने वाला श्राद्ध से मुक्ति पाई जा सके एवम उनको भुला दिया जाए। भागवत ज्ञान सप्ताह से लेकर गया जी करवाने तक पूरे कुटुंब को सात्विक रहना अनिवार्य होता है। मदिरा लहसुन प्याज तक का सेवन प्रतिबंधित रहता है एवं घरेलू वाद विवाद,आक्रामकता,तैश,गाली गलौज को त्यागना पड़ता है. जो कि व्यावहारिक रूप से असंभव होता है.
भागवत सप्ताह मतलब मौज मस्ती का सप्ताह… वैसे तो भागवत सप्ताह के दौरान बहुत कठिन समय बिताना पड़ता है परंतु अब धीरे-धीरे यह सप्ताह मौज मस्ती के लिए जाना जाने लगा है। भागवत कथा के दौरान श्रोताओं के लिए चाय नाश्ते की व्यवस्था चलती रहती है. कथा समाप्ति के पक्ष बफेट टेबल लगाकर लजीज खाना परोसा जाता है। इस दौरान हरियाणवी डांसर सपना चौधरी के गानों पर थुलथुल, बड़े-बड़े मोटे पेट वाले, कमरा का रूप ले चुकी कमर को सांस फूलने तक मटकाते देखे जा सकते हैं. नौकरानीयां भोजन परोसती है और घरवालियां ठुमके लगाती है. इस कार्यक्रम को देखकर या नहीं लग सकता की इसका आयोजन मृत आत्माओं की शांति के लिए किया गया है. भागवत ज्ञान सप्ताह में स्थल को लेकर भी प्रतिस्पर्धा का दौर चलता है. जो जितने महंगे होटल बैंकट हॉल मैरिज गार्डन में भागवत ज्ञान सप्ताह का आयोजन करवाता है उसे उतना ही बड़ा रसूखदार, धनाढ्य माना जाता है. आजकल भागवत ज्ञान सप्ताह का आयोजन करवाना एक स्टेटस सिंबल बन चुका है. महंगे महंगे निमंत्रण कार्ड देख कर स्टेटस का पता चल जाया करता है.
स्थानीय क्षेत्रीय ब्राह्मणों,आचार्यों, शास्त्रीयों, पंडितों को मौका दिया जाना चाहिए … जीवन के हर सुख दुख के समय में जिनका सहारा लिया जाता है. उन्हें भूलाकर बाहर के लोगों के मुख से भागवत ज्ञान सुनना स्थानीय एवं क्षेत्रीय लोगों के बीच भेदभाव उत्पन्न करना होता है. यदि सुख-दुख जीवन मरण के समय में स्थानीय ब्राह्मणों के द्वारा क्रिया कर्म,शादी,विवाह,मांगलिक कार्यों आदि का बहिष्कार कर दिया जाए तो लोगों के लिए सामने विकट समस्या उत्पन्न हो सकती है. बाहर का जोगी जोगना भविष्य के लिए कठिनाई उत्पन्न कर सकता है. इसलिए घर की मुर्गी को दाल बराबर ना समझ कर घर के जल को भी अमृत, गंगाजल समझना चाहिए.