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🔱टिल्लू शर्मा ✒️टूटी कलम 🎤 न्यूज 🌍 रायगढ़ छत्तीसगढ़ 🏹… लक्ष्मीपति विष्णु भगवान के आठवें अवतार श्री कृष्ण का जन्म उत्सव मथुरा, वृंदावन, गोकुल से भी अधिक हर्षो उल्लास से छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में मनाया जाता है. जिसकी चर्चा पूरे हिंदुस्तान में होती है. श्री कृष्ण जन्माष्टमी मेला देखने आसपास के ग्राम एवं जिलों के अतिरिक्त उड़ीसा,बंगाल, झारखंड,बिहार आदि प्रांतों से भी दर्शनार्थी रायगढ़ आते हैं. कालांतर में जन्माष्टमी मेले की शान “सर्कस” हुआ करता था. मगर सरकार के द्वारा वन्य जीवों का प्रदर्शन करने पर रोक लगाने की वजह से देश से सारे सर्कस दम तोड़ दिए. इसके बाद मीना बाजार जन्माष्टमी मेले की शान बरकरार रखा हुआ है. जिन में तरह-तरह के झूले,मौत का कुआं,फिश टनल,जलपरी, आदि के माध्यम से दर्शकों का मनोरंजन किया जाता है एवं खरीदी के लिए,खाने पीने के लिए अनेक तरह की दुकाने लगाई जाती है. देश के अनेक प्रांतो के रंग मीना बाजार में देखे जा सकते हैं.
जन्माष्टमी मेला कहीं दम ना तोड़ दे.. पिछले कुछ वर्षों से देखा जा रहा है कि शहर में लगने वाले मीना बाजार के संचालकों को तरह-तरह के बहाने खोज कर प्रताड़ित किया जाता है एवं उन्हें बहुत छोटा व्यक्ति समझा जाता है जबकि हकीकत यहां है कि मीना बाजार के संचालक करोड़पति हुआ करते हैं. मीना बाजार में लगने वाले प्रत्येक झूले 20 लाख रुपए से लेकर 1 करोड रुपए तक के हुआ करते हैं. मीना बाजार के समान लाने ले जाने का ट्रांसपोर्टिंग किराया कई लाख रुपये हुआ करता है. जिस स्थान पर मीना बाजार लगाया जाता है. उसका किराया कितना दिया जाता है यह जग जाहिर है. लेकिन इन तमाम सोच से दूर लोग मीना बाजार नहीं लगाने का विरोध का अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं. यदि मीना बाजार का विरोध इसी तरह से होता रहेगा तो भविष्य में जन्माष्टमी मेले की चमक खत्म हो जाएगी. बाहर से आने वाले श्रद्धालु केवल श्री श्याम मंदिर,श्री गौरी शंकर मंदिर देखने नहीं आएंगे. मीना बाजार जन्माष्टमी मेले के लिए भीड़ जुटाऊ हुआ करता है.
आखिर जलपरी का इतना विरोध क्यों है… अपनी बात बनती नहीं देखा लोगों ने नया मुद्दा जलपरी के नाम पर अश्लीलता परोसने का उठा दिया गया. जबकि जलपरी का कोई भी शारीरिक अंग दर्शकों को दिखाई नहीं पड़ता है. देखने वालों को जलपरी के साहस की सराहना की जड़ी चाहिए की एक लड़की बगैर ऑक्सीजन सिलेंडर के पानी के भीतर कई घंटे रहकर लोगों का मनोरंजन करती है. जिसको देखकर बच्चे बहुत खुश हुआ करते हैं. वास्तविक अश्लीलता को सड़कों पर, बाजारों में, मॉल में, स्विमिंग पूलों में, समंदर के किनारो पर देखी जा सकती है. जहां टीनएजर से लेकर अधेड़ावस्था की महिलाओ के द्वारा नाभि,नितंब,सीने का प्रदर्शन किया जाता है. किंतु लोग उसे देखकर फैशन करने की संज्ञा दे देते है.
क्या ओलंपिक,एशियाई आदि खेलों में भी अश्लीलता दिखाई देती है.. खेलों में महिलाओं के द्वारा तैराकी,जिमनास्टिक, कुश्ती,वेटलिफ्टिंग आदि में स्किन टाइट कॉस्टयूम पहनकर प्रतियोगिता में भाग लिया जाता है. जिसे देखकर ही उनके शरीर का माप लिया जा सकता है तो क्या यह भी अश्लीलता की श्रेणी में आते हैं. अगर नहीं तो जलपरी में क्या अश्लीलता था दिखाई देती है. आखिर यह भी तो एक खेल ही है. तो फिर इतना भेदभाव क्यों ? क्या सभी हिंदी फिल्मों के अश्लीलता भरे दृश्य नहीं फिल्माये जाते हैं ? तो फिर जलपरी का प्रदर्शन साड़ी,सलवार सूट,घाघरा आदि पहन कर करना क्या संभव हो सकता है ?