आजादी के बाद जब देश आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अस्मिता के लिए संघर्षरत था, तब कई महान व्यक्तियों ने अपनी कार्यकुशलता से विकास की राह में अनेक मील के पत्थर स्थापित किए। इन महान व्यक्तियों के योगदान की बदौलत भारत आज विश्व पटल पर अग्रणी राष्ट्रों में शामिल हो गया है। एक किसान के घर में जन्मे, दूरदर्शी एवं विलक्षण प्रतिभा के धनी, राजनेता, समाजसेवी एवं ओपी जिन्दल समूह के संस्थापक स्व. ओपी जिन्दल उन अग्रणी व्यक्तियों में शामिल हैं जिन्होंने एक सच्चे कर्मयोगी के रूप में स्वावलंबन के माध्यम से स्वाभिमानी भारतीय बनने का संदेश जन-जन को दिया। वे आजीवन किसानों, दलितों-पिछड़ों व जरूरतमंदों को भारतीय लोकतंत्र की मुख्यधारा में आकर अहम भागीदारी निभाने के लिए प्रोत्साहित करते रहे।
एक सांसद, विधायक, मंत्री एवं एक सफल उद्योगपति के रूप में उन्होंने जो दृष्टि दी, वह सदैव भारतीयों का मार्गदर्शन करती रहेगी। 1951-52 में कोलकाता में संघर्ष के दौर में सड़क किनारे पड़े पाइप पर “मेड इन इंग्लेंड” लिखा देखा तो उन्होंने उसी समय “मेड इन इंडिया” का संकल्प लिया और उसे साकार कर दिखाया। राष्ट्रहित उनके लिए सर्वोपरि था, उनके दिल में भारत बसा था और आत्मनिर्भर भारत उनका लक्ष्य था। आज उनकी जयंती पर हम उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर उनके दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आत्मनिर्भर भारत के सपनों से प्रभावित स्व.ओपी जिन्दल कहा करते थे,
“भारत को अग्रणी राष्ट्र बनाना है तो औद्योगिक रूप से हमें आत्मनिर्भर बनना होगा और टेक्नोलॉजी में भी विकसित राष्ट्रों के बराबर रहना होगा।” इतनी ऊंची सोच के कारण ही एक साधारण किसान का बेटा देश का चौथा सबसे बड़ा उद्योगपति बन गया, जो उसकी दृष्टि, धैर्य, कड़ी मेहनत और लगन और साहस का प्रेरणादायक अध्याय है।
वे एक राष्ट्रवादी-उद्यमी थे। उनका मानना था कि एक उद्योग तब तक विकसित नहीं हो सकता जब तक कि उसके आसपास का समाज समृद्ध न हो। बालिका शिक्षा उनकी शीर्ष प्राथमिकता थी। वे कहा करते थे, “लड़की पढ़ती है तो दो घर बसते हैं, लड़का पढ़ता है तो एक घर बसता है”
बाबूजी जननायक थे। एक जन प्रतिनिधि के रूप में उन्होंने सांसद (कुरुक्षेत्र), विधायक (हिसार) और हरियाणा के ऊर्जामंत्री के रूप में कार्य किया। कहा जाता है कि वे लोकसभा सांसद के रूप में चुने जाने वाले भारत के पहले उद्योगपति थे। उनका हमेशा यह मानना था कि मतभेद होना स्वाभाविक है लेकिन उसे संवाद के माध्यम से आसानी से हल किया जा सकता है। उनका जन्म 7 अगस्त 1930 को हरियाणा के हिसार स्थित गांव नलवा में हुआ था। उन्होंने 1952 में कोलकाता के पास लिलुआ में एक स्टील पाइप, बेंड्स एंड सॉकेट्स की फैक्ट्री लगाई। यह फैक्ट्री खूब चली लेकिन बाबूजी का संकल्प तो अपनी जन्मभूमि के लिए कुछ करना था, सो वे हिसार लौट गए और वहां 1960 में उन्होंने लोहा-इस्पात कारखाना स्थापित किया, जो आज आधुनिक भारत के मंदिरों में से एक है। यहीं ओपी जिन्दल समूह की नींव पड़ गई, जो आज स्टील, ऊर्जा, खनन और बुनियादी ढांचा क्षेत्र के अग्रणी समूहों में से एक है। स्व.ओपी जिन्दल की सोच समय से 20 साल आगे की थी। उन्होंने अनुसंधान पर बल दिया। उन्होंने कोई औपचारिक शिक्षा नहीं प्राप्त की थी, लेकिन उनका इंजीनियरिंग कौशल और अंतर्दृष्टि अतुलनीय थी। वे कहते थे,““मैं कारीगर, जो हाथ से काम करने वाला कारीगर है, उसकी राय ज्यादा मानता हूँ, इंजीनियर की कम ।” उन्होंने स्वदेशी तकनीक पर आधारित एक पाइप मिल की स्थापना की। 1970 में उन्होंने जिन्दल स्ट्रिप्स लिमिटेड की स्थापना कर आत्मनिर्भर राष्ट्र के अपने अभियान को आगे बढ़ाया। हिसार में सफलतापूर्वक उद्योग की स्थापना के बाद उन्होंने छत्तीसगढ़ की सुरम्य सांस्कृतिक राजधानी रायगढ़ (तत्कालीन मध्य प्रदेश का हिस्सा) को अपनी कर्मभूमि बनाया। यहां उन्होंने अपने उद्योग समूह के विस्तार की नींव रखी। रायगढ़ में जेएसपीएल का कोयला आधारित स्पंज आयरन प्लांट है जो दुनिया में अपनी तरह का सबसे बड़ा प्लांट है। यह प्लांट स्व. ओपी जिन्दल की दूरदृष्टि और राष्ट्र-निर्माण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
स्व.ओपी जिन्दल संभवतः उद्योग जगत के ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने बैकवर्ड इंटिग्रेशन के रूप में कोयला खदान विकास और फॉरवर्ड इंटिग्रेशन के रूप में स्टील एवं पावर प्लांट की अवधारणा प्रस्तुत की थी, जो अन्य उद्योगों के लिए एक नजीर बन गया। आज क्लीन कोल की बात हो रही है लेकिन स्व. ओपी जिन्दल ने 1990 में ही सीजीपी-डीआरआई के माध्यम से स्टील निर्माण का सपना देख लिया था। उनका वह सपना उनके छोटे बेटे नवीन जिन्दल ने ओडिशा के अंगुल में साकार कर दिखाया। सीजीपी-डीआरआई माध्यम से स्टील उत्पादन करने वाला यह दुनिया का पहला प्लांट है।
बाबूजी सच्चे कर्मयोगी थे और ईमानदारी, कड़ी मेहनत को ही सफलता की कुंजी मानते थे। वे मानते थे, जीवन है तो चुनौतियां आएंगी लेकिन उन चुनौतियों को अवसर में बदलने वाला ही सच्चा कर्मयोगी है -“जीवन है तो संघर्ष चलते रहेंगे, पर सच्चाई और ईमानदारी से उनसे लड़ते रहना ही हमारा कर्त्तव्य है। बाधाएँ चाहे कितनी भी बड़ी हों, कड़ी मेहनत और सच्चे इरादों के सामने टिक नहीं पातीं।”
स्व.ओपी जिन्दल विचारों के रूप में आज भी हमारे साथ हैं। वे हमें सदैव राष्ट्र निर्माण, सामाजिक उत्थान, सर्वधर्म-सर्वपंथ सद्भाव और देश के प्रति निष्ठा-समर्पण से कार्य करने के लिए प्रेरित करते रहेंगे। स्व. ओपी जिन्दल ने गरीबों, जरूरतमंदों, पिछड़ों-दलितों और किसानों का नेतृत्व किया, उन्होंने सदैव सामाजिक समानता की जंग लड़ी। उनका सपना था कि हमारा भारत भेदभाव मुक्त एक खुशहाल देश बने।
बाबूजी ने उद्योग से लेकर समाजसेवा एवं राजनीतिक क्षेत्र में एक अलग कार्य संस्कृति का सृजन किया। उन्होंने सबका साथ-सबका विकास के सिद्धांतों को धरातल पर उतारा। उन्होंने अपने सहयोगियों व कर्मचारियों को सदैव अपने परिवार का सदस्य माना और यही वजह थी कि जिन्दल उद्योग समूह दिन दुनी-रात चौगुनी गति से बढ़ता चला गया। जिस सीएसआर की बात पिछले 20-25 साल से की जा रही है, वास्तव में स्व. ओपी जिन्दल ने अपने उद्योग समूह की बुनियाद ही उस पर रखी थी।
उन्होंने जहां कहीं भी फैक्ट्री लगाई, वहां स्कूल, अस्पताल एवं मंदिर स्थापित किए और क्षेत्र के लोगों के विकास के लिए अनेक कार्य भी कराए। जिस कौशल विकास की बात आज हो रही है, बाऊजी का ध्यान उसपर शुरू से ही रहा। वे कहा करते थे कि कौशल विकास के बल पर ही हम देश से बेरोजगारी खत्म कर सकते हैं और कुशल लोगों के सहयोग से अपने समाज को विकास के पथ पर आगे ले जा सकते हैं। उन्होंने एक ऐसा समूह खड़ा किया जो व्यवसाय के साथ-साथ जीवन मूल्यों की भी बात करता है। यही विशेषताएं जिन्दल समूह को अंतरराष्ट्रीय पहचान देने में कारगर साबित हुई हैं।
स्व. ओपी जिन्दल जी के दिये संस्कार का ही परिणाम है कि आज उनके चारों बेटे स्टील, पावर, खनन क्षेत्र में देश के अग्रणी नाम हैं। पृथ्वीराज जिन्दल के नेतृत्व वाली कंपनी जिन्दल सॉ, सज्जन जिन्दल की जेएसडब्ल्यू, रतन जिन्दल की जिन्दल स्टेनलेस और नवीन जिन्दल के नेतृत्व वाली कंपनी जेएसपीएल आज राष्ट्र निर्माण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान कर रही हैं। परिवार की तीसरी पीढ़ी सुश्री स्मिनु जिन्दल, पार्थ जिन्दल, अभ्युदय जिन्दल और वेंकटेश जिन्दल भी बाऊजी के कर्मयोग के संस्कारों को आत्मसात कर ओपी जिन्दल समूह के विकास में एक नया आयाम जोड़ रहे हैं।
7 अगस्त, 2005 को उनकी जीवनी जारी करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा, “ओमप्रकाश जी अग्रणी भारतीय उद्यमियों की उस दुर्लभ पीढ़ी से हैं, जिनकी जड़ें बहुत गहरी हैं, लेकिन जिन्होंने अपने सपने साकार करते हुए सफलता की बुलंदियों को छुआ। उन जैसे महापुरुष ने आधुनिक तकनीक में महारत हासिल की और उस ज्ञान को आम आदमी की सेवा में लगाया। उन्होंने सीमित संसाधनों से इतना बड़ा औद्योगिक समूह स्थापित किया, जो उनके दूरदर्शी प्रबंधकीय और तकनीकी दृष्टिकोण का प्रमाण है।” उनके बारे में कहा जाता है, “जहां दुनिया दीवार देखती थी, वहां बाऊजी द्वार देखते थे।” स्व. ओपी जिन्दल की देशभक्ति, आत्मनिर्भर राष्ट्र का सपना और समाज को साथ लेकर चलने का उनका संकल्प ओपी जिन्दल समूह के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है, जिन पर पूरी प्राथमिकता से अमल किया जा रहा है।