पाँच तत्व का पूतरा उस मानुष की जात,देखत ही बुझ जाये जयों तारा परभात
मानव जीवन का एकमात्र सत्य यदि कोई है तो वह उसकी मृत्यु ही है। सारा जीवन पापी पेट की खातिर मनुष्य समाज,परिवार,धन,दौलत जमीन,जायदाद आदि के लिये संघर्ष करने वाला मनुष्य सुबह के उस तारे की तरह तेज चमकता तो जरूर है परंतु कुछ ही पलों में वह तारा लुप्त हो जाता है। पानी के ऊपर तैरने वाले बुलबुले हवा के झोंको से नष्ट हो जाते है। प्रकृति मनुष्य को अपने पाँच तत्वों जमीन,आसमान,अग्नि,वायु,जल पर जीवित रखती है और अंत मे इसी में समेट लेती है। मनुष्य के द्वारा किये गये समस्त कार्य निष्फल हो जाते है है,जीवन भर में संघर्षों से लड़कर इंसान इज्जत,साख,रसूख, धन,दौलत,प्रतिष्ठा कमाता,बनाता है मगर साथ कुछ नही ले जा पाता है। नंगा पैदा होकर दुनिया मे आने वाला मानव अंत मे उसी अवस्था मे लौट अग्नि,जल,वायु,पृथ्वी, आकाश में विलीन हो जाता है। अगर कोई साथ जाता है तो वह उसका करम होता है जो कि मृत्यु के बाद भी लोगो के दिलों में स्थान मौजूद रहता है। समय के साथ वह भी धुंधला जाता है। साल में एक आध बार जयंति, पुण्यतिथि पर कुछ क्षणों के लिए याद आता है।
कितनी बड़ी विडंबना है कि जो इंसान संघर्ष कर पूरे समाज,परिवार के ही हितों में अपना जीवन गुजारता है। उसके मरने के बाद उसी के शुभचिन्तको में जिज्ञासा उतपन्न हो जाती है और वे अपने तमाम नेटवर्कों के माध्यम से यह जानकारी लेते रहते है कि उसका दाहसंस्कार कब होगा ? कहां होगा ? शवयात्रा निकलने कितना समय लगेगा ? देर हो जाने पर वे शुभचिंतक जल्दी ले चलो कहते सुने जाते है। देर होने पर मृतदेह अकड़ जायेगी, बदबू आने लग जायेगी। यह भी उन्ही परिजनों के मुंह से सुनाई पड़ने लगता है। जिनके सुखद भविष्य की खातिर मृतक अपना सारा जीवन खपा देता है।
29.8.20 को रायगढ़ जिले ने एक प्रखर पत्रकार शशिकांत शर्मा को खो दिया। जो कि पत्रकारिता जगत के लिये अपूर्णीय क्षति है। उनकी लेखन शैली,व्यंग्यात्मक,कटु, सत्य एवं कई अर्थों वाली होती थी। जिसे पढ़कर हर आदमी अपने अपने मायने निकालते थे। जबकि कड़वा सच कुछ और ही होता था। हिन्दीभाषा पर मजबूत पकड़ रखने वाले विद्वान ही उनकी लेखनशैली को समझ पाते थे। 23 अगस्त 1955 में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से दो दिन पहले छठ तिथि में स्व.अश्वनी कुमार, गीतादेवी शर्मा के प्रथम पुत्ररत्न के रूप में पैदा होने वाले शशिकांत शर्मा का घरेलू नाम पप्पू गया था। उन दिनों स्व.अश्विनी कुमार जी भी गरीबी से संघर्ष कर रहे थे। परिवार में बड़ा लड़का होने की वजह से पप्पू भाई नाना,नानी,मामा,मामी,बुआ,फूफा,चाचा,चाची सभी के चहेते थे और लाड़, प्यार में पलकर बड़े हुए। नटवर स्कूल,पी डी कॉमर्स कालेज,स्वामी बालकृष्णपुरी ला कालेज से शिक्षा प्राप्त शशिकांत अ.भा.वि.प के अध्यक्ष भी रह चुके थे। उनके लँगोटिया मित्रो की सूची वैसे तो बहुत विस्तृत है परन्तु पारिवारिक सदस्यों के रूप में अविभाजित म.प्र के तत्कालीन मंत्री नंदेली के नंदन स्व.नंदकुमार पटेल,पूर्व विधायक रोशनलाल अग्रवाल,विजय भैया, विजय बापोडिया,स्व.विजय मुगले,अमरीक सिंह संसोवा(टीट्टू) विष्णु महाराज, संतोष राय सांवड़िया,डाक्टर लालकुमार पटेल,आदि प्रमुख थे। शशिकांत का विवाह ब्रजराजनगर की कन्या उर्मिला के साथ हुआ था। जिनसे 4 पुत्रो नौलखा,नौरतन,आशीष, अभिषेक ने जन्म लिया था। जिनमे से अभिषेक की मृत्यु लाइलाज बीमारी मायोपैथी की वजह से हो गई थी। अपने लाड़ले अभिषेक को मायोपैथी बीमारी से मुक्त करवाने के लिये शशिकांत ने हर संभव एवं हर स्तर पर प्रयास किये थे परन्तु अभिषेक को बचाया न जा सात और वह चल बसा। बस यही एक अवसर था। जिससे हरफनमौला, हाजिर जवाबी, कलमवीर में कुछ टूटन आई थी। दो वर्ष पहले उनकी अर्धांगिनी उर्मिला का भी निधन हो गया था। जिसकी वजह से वे लगभग एकाकी जीवन गुजार रहे थे। बहुत कुछ सहन करने के बावजूद वे काफी जीवट इंसान थे।
अपने पिता स्व.अश्विनी कुमार के द्वारा करवाये गये थोक अनाज,तेल मिल,प्रिंटिंग प्रेस,लकड़ी टाल,कपड़ा,ज्वेलर्स,दवाई दुकान का व्यवसाय उनको रास नही आया जो समय समय पर बंद होते चले गये। बाद में शशिकांत ने ललित पाठशाला के पास स्वंय की अभिषेक मेडिकल के नाम से दवाA दुकान खोली थी। जहां सुबह-शाम राजनैतिक एवं बुद्धिजीवियों की बैठकें होती रहती थी। सरस्वती के साधक पप्पू को व्यवसाय रास नही आता था और वे दिनभर दुकान में बैठकर अपनी कलम से विषयो पर आग उगलते रहते थे। कड़वा सच,कटु सत्य के नाम से कालम लिखने वाले उनके कालमो को सभी अखबार प्रमुखता से स्थान देते थे। हैदराबाद में बाईपास सर्जरी करवाने के बाद वे दवा लेते रहे परन्तु अपनी कलम को जीवन के अंतिम क्षण तक विश्राम नही दिया। वे जिंदल उद्योग विरोधी मामले में प्रथम पंक्ति में जाने पहचाने जाते थे। जमीन अधिग्रहण, केलो जल,कोयला,प्रदूषण,बिजली उत्पादन,आदिवासियों,मजदूरों के शोषण,स्थानीय लोगो को रोजगार को लेकर आंदोलनों में भाग लेते रहे और उनके हक के लिये लड़ते रहे। जिस वजह से वे जिंदल उद्योग के घुर विरोधी संघठनो में मुख्य भूमिका करते रहे। उनपर जिंदल ने कई केस दर्ज करवाये थे। मानहानि के मुकदमे पर वे स्व.रामकुमार जी,जयंत बोहिदार, राजकुमार गुप्ता आदि के साथ पेशी भुगतने हरियाणा एवं दिल्ली जाया करते थे।बाद में वहां की माननीय न्यायालय ने इन पर रहमकर केस रायगढ़ ट्रांसफर कर दिया था।
बीती 23.8.20 को उन्होंने अपना अंतिम जन्मदिवस मनाया था और 24 तारीख से उनकी तबियत नासाज होने लगी थी परन्तु उन्होंने सर्दी,खांसी,सांस लेने में तकलीफ,बंद होते गले को भी गम्भीरता से नही लिया और कोरोना के लिये प्रचलित दवाओं का सहारा लेकर घर पर ही दवा खाते रहे। जब 29 तारीख को उनका आक्सीजन लेबल 35 पर आ गया था। तब उन्हें शाम लगभग 4 बजे एम्बुलेंस से जिला अस्पताल लाया गया। तब तक देर हो चुकी थी। डॉक्टरों के प्रयासों के बावजूद कड़वा सच लिखने वाला शशिकांत जीवन का कड़वा सच को परिभाषित कर गया था। उनके निधन की खबर सोशल मीडिया पर प्रसारित होते ही। सहसा किसी को यकीन न हुआ और उनके चाहने वालो,शुभचिन्तको, रिश्तेदारों, जान पहचान वालो के फोन बजने लगे थे। रातभर मरचुरी में रखकर 30 तारीख की सुबह उनके मृतदेह की जांच आदि कर मुक्तांजलि वाहन से शहर से सुदूर अमलीभौना के निर्जन स्थान पर अंतिम क्रिया के लिए भिजवाया गया। जहां पूर्व से निगम उपायुक्त,नायाब तहसीलदार उपस्थित थे। जिनकी निगरानी में कोविड 19 के दिशा निर्देशों पर क्रियाकर्म किया गया। शशिकांत की देह को मुखाग्नि उनके द्वितीय पुत्र नवरतन ने दी।
इसके साथ ही प्रेस बिरादरी स्तब्ध हो गई। किसी को विश्वास नही हो रहा कि उनके बीच सबसे अलग लेखनी का कलमकार अब दुनिया से विदा ले चुका है। शनिवार की सुबह अपने कई शुभचिन्तको, रिश्तेदारों से फोन कर अपनी अस्वस्थता जाहिर कर बेहतर ईलाज डाक्टर के पास जाने की बातें कही परन्तु इसके बावजूद इलाज करवाने न जाकर घर पर ही रुक जाना ही उनकी मृत्यु का बहाना था। जो उन्हें जकड़कर घर से निकलने ही न दी। उनके निधन के बाद समूचे प्रेस जगत में हैरान,किर्तव्यमूढ़ कर देने वाली स्थिति निर्मित हो गई थी। सभी दबी जुबान से इस सच्चाई को पूछ रहे थे। सब के मन मे यही उम्मीद थी कि काश यह सच्चाई झूठ में तब्दील हो जाये और हंसता हुआ निर्भीक,निडर,बेबाक,निष्पक्ष बातें लिखने वाला शशिकांत फोन कर सबको भजिया,बड़ा, चाय की पार्टी पर केलो विहार के घर पर आने आमंत्रण दे दे। मगर होनी को जो मंजूर है। वह होकर रहती है। एक झटके में सारे बंधन तोड़कर शशिकांत शिवलोक गमन कर गये। अब उनके न रहने पर जगह जगह आयोजित होती शोक सभाऐं उनकी लोकप्रियता की पहचान है।
इस कोरोना नामक बीमारी ने सभी इंसान को अपनो से इतना दूर कर दिया है कि लोग मृतक को छूना तो दूर की बात है। दूर से दर्शन भी नही कर सकते। दिनभर पप्पू भाई,पप्पू भाई,शशि भैया,शशि भैया,ताऊ,चाचा,बाबा कहकर न थकने वालो को भी मन मनोसकर अपने अपने घरों पर रहना पड़ गया। यदि यह कोरोना संक्रमण काल नही होता तो शशिकांत की अंतिम यात्रा में शामिल चाहने वालो भी भीड़ एक इतिहास लिख देती। लेकिन होनी को कौन टाल सकता है। नर नही होत है,समय होत बलवान है। शशिकांत शर्मा के निधन के बाद प्रेस क्लब एवं जिला प्रेस एशोसिएशन रायगढ़ ने एवं प्रेस क्लब खरसिया ने शोकसभा आयोजित दो मिनट का मौन धारण कर मृतक आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना कर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण किया गया।
चंद्रकांत टिल्लू शर्मा “संपादक टूटी कलम”✍️✍️✍️
