🔴आबकारी,खनिज,वन,राजस्व,फूड,पशु विभाग,आदि सभी सरकारी विभागों की जिम्मेदारी केवल एकमात्र पुलिस विभाग निभाता है और बाकी सभी विभाग के कर्मचारी,अधिकारी सरकारी तनख्वाह को माले मुफ्त बेरहम होकर लेते है। नगर एवं ग्राम निवेश एक छुपा हुआ रुस्तम विभाग है। जो मोटा नजराना लेकर अवैध कालोनियों को भी वैध करार देकर सरकारी नजूल जमीनों पर निर्माण के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर देता है। जिसकी जांच भी पुलिस विभाग को दे दी जाती है। तहसील कार्यालय के सामने निगम द्वारा निर्मित प्रथम तल को किराए में लेकर कार्यालय चलाया जाता है। जबकि इस कार्यालय में एक अधिकारी और एक बाबू के द्वारा भूमाफियाओं से सेटिंग कर 12 फिट के रास्ते को भी 12 मीटर दर्शा दिया जाता है। इस विभाग की उच्च स्तरीय जांच करवाई जाए तो करोड़ो रुपयों का ही नही अपितु अरबो रुपये का फर्जीवाड़ा आसानी से मिल सकता है। यहां पदस्थ होने वाले अधिकारी चंद माह में ही करोड़ो रुपये की कमाई कर प्रमोशन लेकर के जिले से फुर्र हो जाते है। बतलाया जाता है कि यहां के रजिस्टर,कागजातो में बैक डेट लिखकर कोरे छोड़ दिये जाते है ताकि भविष्य में अधिकारी अपने बचाव के लिए कुछ भी लिख सके।
सरकार को चाहिए कि इन सभी विभागों की जिम्मेदारी भी पुलिस महकमे के आला अधिकारियों को सौप देनी चाहिए।जिससे कि विभागों में चुस्ती,फुर्ती,आदर्श का संचार कायम रह सके। बिजली चोरी तो पुलिस,राशन,लकड़ियों की तस्करी तो पुलिस,रेत चोरी तो पुलिस,शराब, गांजा,कोरेक्स पर पुलिस की निगाह,जब सभी विभाग के कार्य पुलिस की मदद से बिना नही किये जा सकते तो फिर अधिकारियों,कर्मचारियों ,विभागों की भीड़ क्यों बढ़ाई जाती है। सभी विभागों को पुलिस विभाग में अटैच कर दिया जाये तो बल की कमी से जूझ रहे पुलिस विभाग के पास पर्याप्त बल उपलब्ध हो सकता है।
लठैतों के रूप में पुलिस जब प्राइवेट शराब के ठेके होते थे तो शराब ठेकेदारों के पास अवैध शराब की बिक्री,परिवहन,कोचियों पर नियंत्रण रखने के लिए,उत्तरप्रदेश, बिहार,झारखंड के लठैतों का सहारा लिया जाता था। इनकी संख्या बहुत होती थी जो कि पूरे क्षेत्र में घूम घूम कर अपने मालिक का हित चाहते थे। जिससे यदा कदा अवैध शराब के प्रकरण बनते थे। ये लठैत तस्करो की जमकर धुनाई भी करते थे तो पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज नही होती थी। लगता है कि शराब की बिक्री सरकार के द्वारा किये जाने से पुलिस उन लठैतों की भूमिका निभा रही है। आबकारी अमले में भी पुलिस के समान पद होते है,पावर होती है। मगर न जाने क्यूँ ये भी पुलिस कार्रवाई पर ही आश्रित रहते है । जहां मारपीट,गुंडागर्दी होने की संभावना रहती है। वहां से आबकारी अमला अपने कदम पीछे खींचकर पुलिस विभाग को आगे कर देता है।
पुलिस के प्रदेश प्रमुख महानिदेशक डी एम अवस्थी ने फरमान जारी किया कि किसी भी थाना क्षेत्र में अवैध शराब का मामला सामने आने पर सम्बन्धित थाना क्षेत्र के प्रभारी पर विभागीय कार्रवाई की जाएगी। जो कि हर दृष्टि से सही नही है क्यूंकि आबकारी अमले के पास स्वयं के निरीक्षक, उपनिरीक्षक,आरक्षक, मुंशी होते है। जिनके पास बकायदा बन्दीगृह होते है,उड़नदस्ता की अलग शाखा होती है। जहां दिनभर ताश से रमी खेलते हुए। सिगरेट के कश लगाते हुए ड्यूटी निभाई जाती है। आबकारी के प्रादेशिक अधिकारी को चाहिए कि वे अपने विभागीय कर्मचारियों के लिए इस तरह का फरमान जारी करे। तब देखा जाएगा कि अवैध शराब,गांजा आदि नशीले समान कैसे बिक पाते है। माइनिंग,खाद्य,ओषधि,राजश्व,वन आदि सभी विभागों में इंस्पेक्टर प्रथा है परंतु अन्य सभी विभागों के इंस्पेक्टर केवल काम के लिए है क्यूंकि इनका काम पुलिस इंस्पेक्टर ही करते है। मोटी मोटी धनराशि,उपहार सभी विभाग के निरीक्षक लेते है परंतु बदनाम पुलिस निरीक्षक होते है। धान,पशु,शराब,गांजा,दवाई,कोयला,रेत,लकड़ी,कबाड़,आदि पर पुलिस कार्रवाई क्यो करती है। यह समझ से परे है क्यूंकि पुलिस का कार्य अपराध पर नियंत्रण कर शांति व्यवस्था कायम करना होता है। पुलिस सभी विभागों के लिए बजरंगबली बन जाती है। शाबासी अन्य विभाग को मिल जाती है परंतु अन्य कोई भी विभाग क्या पुलिस का फर्ज निभाते है। लाकडाउन के दौरान लोगो को मास्क,सेनेटाइजर, दो गज की दूरी,घर से न निकलना आदि के संदेश पुलिस ने जन जन तक पहुंचाए जो कि स्वास्थ्य विभाग का कार्य है। जिसके लिए सरकार ने अलग से फंड उपलब्ध करवाया था। जिसे पुलिस विभाग की ततपरता के कारण स्वास्थ्य विभाग ने शायद पूरा हजम कर लिया। राशन सामग्रियों, पान पाउच आदि की कोरोनकाल में जमकर कालाबाजारी की गई,नियम को ठेंगा दिखलाते हुए गुपचुप रूप से दुकाने संचालित की गई थी जिनपर भी पुलिस ने नजरे ततेरी तो श्रम विभाग खाद्य विभाग ने क्या किया। नशीली दवाओं का कारोबार होता है तो ओषधि विभाग हाँथ पर हाँथ धरे क्यो बैठा रहता है।शायद पुलिस की सक्रियता के कारण से