यह शास्वत सत्य है कि जब जब जलवायु में परिवर्तन होता है तब तब मनुष्य जीवन मे प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जिससे मौसमी बीमारी भी कहा जाता है। हाड़ कपा देने वाली ठंड के बाद गुलाबी ठंड के बाद ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत होती है। जिससे ठंड में जमी बर्फ भी पिघलने लगती है । वैसे ही एयरकंडीशन कमरे से बाहर निकलने पर थोड़ी सी गर्मी भी भारी जलन भरी तपिश लगने लगती है। चाय पीने के तुरंत बाद पानी पीने से भी गले की खराश बढ़ जाती है। मौसम के करवट बदलते ही बीमारियों का आगमन होता है। जैसे सर्दी,खांसी, बुखार,बदनदर्द,वात,उल्टी,चक्कर,कमजोरी,पीलिया,लूज मोशन,मलेरिया,डेंगू, अस्थमा आदि समय अनुकूल ही जन्म लेते है। ये सब बीमारियां अब कॉमन बन चुकी है तो इनके स्थान पर सब बीमारियों का एक ही नामकरण कर दिया गया है। जिसका नाम है “कोरोना” जो फैलता तो तेजी से है परन्तु इसकी चपेट में आकर मरने वालों का प्रतिशत भयावह नही है। वैसे भी 60 साल से ऊपर के लोग नाना प्रकार की बीमारियों से जकड़ जाते है। उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता भी घट जाती है। जिससे बीमारियों से उबरने में समय भी लग सकता है। वैसे ही 10 साल तक के बच्चे पानी,धूल से खेलते रहते है। जिससे बीमारी होने के चांस अधिक होते है।
देश मे बढ़ता प्रदूषण,घटता पर्यावरण बीमारियों का प्रमुख कारण है—-आंकलन के अनुसार देश के जिन क्षेत्रों में खेत,खलिहान,जल,जंगल गायब होकर कांक्रीट के महल बन रहे है। वहां बीमारियां तेजी से फैलती है। मुम्बई, इंदौर,रायपुर,भोपाल,दुर्ग,राजनांदगांव,दिल्ली,एन सी आर,नागपुर आदि पूरी तरह से प्रदूषण की मार झेल रहे क्षेत्र ही कोरोना की चपेट में ज्यादा आते है।
शंख,थाली,घण्टीबजाना,अंधेरा कर दिया जलाना क्या कोरोना वायरस भगाने का सूत्र है विज्ञान के इस युग मे इस तरह के कार्यो करना कम हास्यास्पद नही है। मानो कोरोना वायरस न होकर कोई भूत प्रेत, चुड़ैल,चंडाल है।