टूटी कलम रायगढ़—- छत्तीसगढ़ प्रदेश की प्रतिष्टित दवा ग्रुप लक्ष्मी मेडिकल स्टोर्स की शाखा रायगढ़ शहर के हृदय स्थल गांधी पुतला के पास,सेंट्रल बैंक के सामने शीघ्र ही खुलने जा रही है। जो कि शायद डे-नाईट सर्विस देगी सांथ ही देश के किसी भी डाक्टर के द्वारा किसी भी बीमारी से सम्बंधित दवा उपलब्ध करवाई जा सकेगी। लक्ष्मी मेडिकल के शहर में पदार्पण की खबर मिलने पर शहर में अपने आपको दवा के बादशाह समझने वाले दवा दुकानदारो के चेहरे बुझे बुझे से हो गए है क्योंकि इस ग्रुप के द्वारा दवाइयों की उपलब्धता एवं कम्पीटिशन डिस्काउंट को कोई नही सक पायेगा यह तय है। इस ग्रुप की दर्जनों दवा दुकानों की ब्रांच क्रियाशील है और यदि वह कम्पीटिशन पर उतर जाए तो कई दवा दुकानदारो को अपना धंधा समेटना पड़ जायेगा। वैसे भी इस ग्रुप के आ जाने पर कितनी दवा दुकाने बंद होगी। यह भी देखना है क्योंकि हर इंसान दवा सरीखी चीज प्रतिष्ठित एवं साफ सुथरी दुकान से ही खरीदना चाहता है।
नाजो नखरे करने वाले बन जाएंगे सफेद गांय—- प्रायः यह देखा जाता है कि दवा दुकानदार किसी भी ग्राहक,मरीज से सीधे मुंह बात भी नही करते एवं इनका व्यवहार भी एकदम रूखा रूखा सा रहता है। दवा न मिलने पर सब्सिट्यूट कर यह भी बोलते देखे जा सकते है कि यही दवा मिलेगी लेना हो तो लो अन्यथा निकलो यहां से जबरिया भीड़ न लगाओ। लक्ष्मी मेडिकल के खुल जाने के बाद ये दुकानदार ग्राहकों को “ऑलिव ऑयल” की मालिश करने लग जाये तो कोई बड़ी बात नही होगी। अपने आप को साफ सुथरी छवि के दुकानदार समझने वाले दुकानदार कोडीन, अल्प्राजोलम, नाईट्रा,स्पास्मो,फोर्टविन,बटरम, आदि नशे की दवाइयां बेचने में लग सकते है ताकि दुकान बंद करने की नोबत न आ सके एवं साख बची रह सके। डाक्टर भी दवा पर्ची लिखकर लक्ष्मी मेडिकल से ही दवा खरीदने के लिए मरीजो से कहेंगे तो कोई क्या कर सकेगा ? मेडिकल कालेज के डॉक्टर भी दवा लक्ष्मी मेडिकल से लाकर दिखलाने को कहेंगे तो मरीज की मजबूरी होगी वहीं से दवा खरीदने की।
जैसा कि लक्ष्मी मेडिकल का दावा है कि प्रदेश के लगभग 1 करोड़ से ऊपर के इंसान उनकी दवा दुकानों के नियमित ग्राहक है तो भला रायगढ़ में इसकी सफलता को कौन रोक सकता है ? ज्ञात रहे कि देश की प्रतिष्ठित दवा दुकानो की श्रृंखला “अपोलो फार्मेसी” की दवा दुकान चैतन्य नगर में पहले ही खुल चुकी है।
दवा दुकानों के चना मुर्रे की तर्ज पर बन रहे लाइसेंस बनने में लग सकेगी रोक—जिला खाद्य एवं औषधि विभाग द्वारा 2 साल के अंदर 50-50 हजार रुपये लेकर बगैर स्थल का निरीक्षण किये पान दुकानों की साइज की दुकानों को दवा दुकान संचालन के लाइसेंस रेवड़ी की तरह से बांट दिए है। जिसका खावियाजा अब इन दुकानदारो को भुगतना पड़ सकता है। कई दुकानदारो को तो बगैर बोहनी किये रात को दुकाने बंद करनी पड़ सकती है। शहर की दवा दुकाने नियमो की धज्जियां उड़ाते हुए संचालित की जा रही है। किसी भी दुकान में लाइसेंस धारी फार्मासिस्ट नही बैठता है। 5वी 8वी तक पढ़े लिखे लड़के ही दवा दुकाने संचालित करते देखे जा सकते है। शेड्यूल H के रजिस्टर का पालन नही होता,न ही दवा बिक्री के बिल दिए जाते है,न ही दुकानों में ए सी लगा होता है,न ही आलमारियों में कांच लगे होते है,न ही जानवरो की दवाइयों के अलग से लिखित रैक लगे होते है आदि इतनी खामियां दवा दुकानों में पाई जाती है कि यदि ड्रग इंस्पेक्टर अपनी तनख्वाह से संतुष्ट हो जाये तो जिले की सैकड़ो दवा दुकानों के लाइसेंस स्थल पर ही निरस्त किये जा सकते है। मगर साल का जब लगभग 40 लाख रुपये नजराना मिलता हो तो इनको क्या है ? दवा दुकानदार दवा बेचे या की जहर भेजे ?