लाकडाउन क्या हुआ कि कुत्तो के दिन फिर गये। खा खा कर इतने तन्दरुस्त हो गये कि पालतू जर्मन शेफर्ड, लेब्राडोर,डाबरमैन,डालमेशियन आदि को भी मात देने लगे है।ब्रीड पहचानना मुश्किल हो गया है। शाम होते ही ये समूह का रूप धारण कर सड़को,गलियों में डेरा, अधिकार जमा लेते है।चौक,चौराहों पर बड़ी बेशर्मी, बिना डर के आपस मे भीड़ जाते है।गैंगवार,गुटबाजी का जीता जागता उदाहरण है ये कुत्ते,क्या मजाल की दूसरी किसी अन्य गली का कुत्ता इनके क्षेत्र में कदम भी रख दे।उसपर पूरा गैंग हल्लाबोल देता है एवं पिट पिटाकर वह अन्य साथियों के साथ पुनः आ धमक कर सामूहिक युद्ध शुरू कर देते है।जिससे रात में नींद में खलल पड़ता है।जबकि इन दिनों मानव की दिनचर्या कोरोना ने बदल कर रख दी है। अंधेरा घिरते ही ये कुत्ते वाहन चालकों को समूह में अलग अलग दिशा से घेरकर दौड़ाते है। अभी तो ग्रीष्म ऋतु है तो चल जा रहा है मगर जून के बाद वर्षा ऋतु आते ही ये कुत्ते अपनी फूल दादागिरी में आ जायेंगे। तब ये कुत्ते दौड़ा दौड़ा कर इंसानों को काटने लग जाएंगे फिर जिला प्रशासन, निगम प्रशासन को कोरोना के बाद इन कुत्तो से काटने से होने वाली हाइड्रोफोबिया नामक बीमारी से जंग लड़ना पड़ सकता है। निगम प्रशासन को चाहिए कि बरसात पूर्व ही इन कुत्तो का उचित प्रबंध करे।अभी लाकडाउन है इसलिए डॉग कैचर वाहन में इन्हें भरकर दूर जंगलो में छोड़ा जाना चाहिये।कुत्ता मांसाहारी जानवर होता है जो जंगल मे भी भूखा नही मर सकता। कई कुत्ते मिल जाने पर हांथी सरीखे बलशाली,शेर सरीखे आक्रमक जानवरो को भी दौड़ा देते है। लोग इन कुत्तो को रोटी तो जरूर डाल देते है मगर मन मे भय का आलम समेटे क्यूँकि ये कब काट ले इनका कोई भरोसा नही रहता।