रायगढ—– फर्श से लेकर अर्श तक का सफर अपने अकेले के बलबूते पूरा करने वाले ,छत्तीसगढ़ प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी का दुनिया से विदा लेना राजनीति जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। गरीबों के मसीहा अजीत जोगी का जन्म बिलासपुर के करीब छोटे से गांव मरवाही के जोगी डीपी में हुआ था। आदिवासी परिवार में जन्म लिए अजीत जोगी बाल्यकाल से ही कुशाग्र बुद्धि के धनी थे। जैसे-जैसे वे बड़े होते गए उनकी बुद्धि में एक अलग तरह का कुछ कर गुजरने की तमन्ना ने जन्म लेना शुरू कर दिया था । शुरुआत में वे बी ई मैकेनिकल इंजीनियर बने उसके पश्चात वे जिला पुलिस अधीक्षक के रूप में चयनित हुए उसके बाद वे भारत के सबसे बड़े प्रशासनिक पद कलेक्टर के रूप में पदस्थ हुए। लेकिन अजीत जोगी की विजय यात्रा का पथ यहीं समाप्त नहीं हुआ था। उनके मन में देश के लिए प्रदेश के लिए एवं गरीब आदिवासियों के लिए कुछ अलग कर गुजरने की इच्छा शक्ति थी। जिनकी वजह से वे तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के करीब आए एवं इंदौर की कलेक्टरी छोड़ राज्यसभा सदस्य के साथ अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई बाद में वे 1998 में रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए सन 2000 में जब मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ राज्य अलग हुआ तब वह छत्तीसगढ़ प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में पदस्थ हुए उसके पश्चात लोकसभा चुनाव में भाजपा की टिकट से चुनाव लड़ रहे स्वर्गीय विद्याचरण शुक्ल को महासमुंद लोकसभा क्षेत्र से लगभग 200000 से करीब वोटों से हराया था ।इस चुनाव के दौरान जब वे चुनावी आमसभा समाप्त कर देर रात लगभग 3:00 बजे लौट रहे थे तो ड्राइवर को झपकी लगने के कारण उनकी वाहन पेड़ से जा टकराई। बस इस दुर्घटना के बाद से अजीत जोगी का राजनीति सितारा धीरे धीरे अस्त होने लगा । दुर्घटना के कारण उनके कमर के नीचे का हिस्सा सुन्न हो गया जिसका इलाज देश-विदेश सभी जगह करवाया गया परंतु कोई फायदा नहीं हुआ अजीत जोगी के स्वयं के पैर पर खड़े ना हो सकना पूरी प्रदेश कांग्रेस के लिए बहुत बड़ी क्षति थी जिसकी वजह से लगभग 15 साल भाजपा प्रदेश सरकार में काबिज हो गई थी
कांग्रेस में राजनीतिक मतभेद की वजह से अजीत जोगी को कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया था उसके बावजूद वे कांग्रेस के प्रति निष्ठावान रहे एवं लगातार पार्टी में पुनः वापसी का प्रयास शत-शत करते रहे किंतु इसे भाजपा के लिए शुभ संकेत माने की कांग्रेस के लिए 15 साल सत्ता से दूर होना अशुभ संकेत माने प्रदेश के कद्दावर कांग्रेसी नेता किसी भी कीमत पर अजीत जोगी की पुनः कांग्रेसमें वापसी नहीं चाहते थे वजह केवल यह है कि अजीत जोगी के कद के सामने किसी का कद दिखलाई नहीं पड़ रहा था
कांग्रेस प्रवेश की तमाम कोशिशों के बावजूद थक हार कर अजीत जोगी ने क्षेत्रीय पार्टी जोगी जनता पार्टी का गठन किया एवं अपने प्रत्याशी खड़े कर चुनाव में सक्रियता दिखलाई जिसमें अजीत जोगी के आठ प्रत्याशी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच गए जबकि प्रदेश में 15 साल तक राज करने वाली भारतीय जनता पार्टी को महज 15 सीट ही मिल पाई थी इस हिसाब से देखा जाए तो अजीत जोगी अपने मकसद में कामयाब रहे थे
भारतीय जनता पार्टी का छत्तीसगढ़ प्रदेश में लगातार 15 साल तक बने रहना कांग्रेस की फुट का ही परिणाम था यदि समय रहते सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी अजीत जोगी को छत्तीसगढ़ प्रदेश के लिए फ्री हैंड छोड़ देते तो शायद भाजपा शासन कर ही नहीं पाती यह तो नहीं मालूम कि सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी के मन में अजीत जोगी के प्रति कैसा डर था कि वे अंत तक जोगी को काग्रेस में वापस नहीं लाए ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है की तीक्ष्ण बुद्धि से लबरेज एवं चुंबकीय व्यक्तित्व से भरपूर अजीत जोगी में एक करिश्माई व्यक्ति की झलक दिखलाई पड़ती थी इस कारण से कि कहीं भविष्य में अजीत जोगी कांग्रेस पार्टी के सर्वे सर्वा बनकर प्रधानमंत्री पद की दावेदारी ना कर दे इस भय से अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने उनका कोई भी निवेदन, अनुनय, विनय स्वीकार नहीं किया।
कहते हैं कि जाने वाले चले जाते हैं और अपनी यादें छोड़ जाते हैं । कुछ बिरले लोगों में से अजीत जोगी छत्तीसगढ़ प्रदेश के ऐसे व्यक्ति थे की जब-जब छत्तीसगढ़ प्रदेश का नाम आएगा तब तक अजीत जोगी को प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में जाना पहचाना जाएगा लाखों कोशिशों के बाद भी उनका नाम नहीं मिट पायेगा उनका नाम ऐतिहासिक लोगों में दर्ज हो चुका है आने वाले समय में छत्तीसगढ़ प्रदेश के स्कूली पाठ्यक्रम में उनका नाम जरूर उल्लेखित होगा