रायगढ़——-पिछले कई दिनों से जीवनदायिनी केलो माई की महाआरती का जमकर प्रचार प्रसार किया गया था। जिसमे फलां कार्यक्रम होगा,फलां तरीके से आरती की जायेगी, फलां फलां लोग अतिथि होंगे,फलां फलां प्रसाद वितरण होंगे परन्तु यह नही बतलाया गया कि कार्यक्रम की समाप्ति के पश्चात फलां तरीको से केलो के घाटों की सफाई होगी और केलो के उद्धार पर करोड़ो रूपये का बजट राज्य शासन से मांगा जायेगा।
जैसा नजारा हर कार्यक्रम की समाप्ति के पश्चात देखने को मिलता है। वैसा ही इस दफे फिर देखने को मिला केलो महाआरती के पश्चात घाटों के इर्दगिर्द फेके गये फूल मालाएं,डिस्पोजल गिलास,कटोरी,चम्मच, खाली पानी पाउच,कागज,पुट्ठे,पन्नियां,पानी की बोतल आदि बिखरे पड़े है। फेके गये अनाज,केले के छिलके,नारियल के बुच आदि से सड़ांध फैल रही है। कलेक्टर भीम सिंह का सुघ्घर रायगढ़ का सपना इस तरह की लापरवाही से कभी साकार नही हो पायेगा। जब जब केलो तट पर मकरसंक्रांति, कार्तिक पूर्णिमा, छठ पूजा,आदि के बड़े बड़े कार्यक्रम होते है तब तब समाप्ति के पश्चात ऐसा रूप देखने को मिलता है। कार्यक्रमो में शामिल होने के बाद लोग अगले दिन से ही उस ओर से मुंह मोड़कर अपने अपने कार्यो में व्यस्त हो जाते है। उद्योगों द्वारा नदी के पानी का दोहन कर छोड़े जाने वाले हानिकारक विषाक्त जल से मानव जीवन के साथ ही जलचरों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है,सीवरेज का पानी भी नदी में जाकर मिलता है,नदी के बीच उगी झाड़ियां सुंदरता में रूकावट डालती है। केलो मैया की आरती करने की अपेक्षा इसके उद्धार पर कार्य किया जाये तो सही समर्पण,लगाव कहला सकता है।
कार्यक्रम में छाई रहती है राजनीति—–देखा जाता है कि होने वाले सभी सार्वजनिक कार्यक्रमो में रासजनीति छाई रहती है। सरकार जिसकी होती है उन्ही का बोलबाला रहता है। जबकि सार्वजनिक कार्यक्रमो में समानता की भावना रखी जानी चाहिए। राजनीतिक मतभेद होने चाहिए परन्तु मनभेद नही रखने चाहिए। समानता रखने पर बड़प्पन झलकेगा। जिससे आमजनों के जेहन में अच्छा सन्देश भी जायेगा। केलो माई की महाआरती करने वालो को केलो से सीख लेनी चाहिए और हृदय बडा रखना चाहिए। जिस तरह से लोगो द्वारा फैलाई गई गंदगी को एक बारिश में ही अपने अंदर समेटकर आगे बढ़ जाती है। जिस तरह नदियों की कोई जात नही होती,जिसके जल का उपयोग सभी धर्मों के लोग करते है। मुस्लिम वजू करते है तो ब्राम्हण प्यास बुझाते है,मोची चमड़ा तो धोबी कपड़ा धोते है। उसी तरह मनुष्यो को भी नदियों की अच्छाइयों को ग्रहण करनी चाहिये। नदियां पाषाणों को तोड़कर अपने आगे बढ़ने का मार्ग स्वंय बना लेती है परन्तु विपरीत नही बहती। इंसान को ऐसी ममतामयी मां से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए।