टूटी कलम रायगढ़—- प्रदेश सरकार के द्वारा शराब बेचे जाने के फैसले से प्रदेश की कानून व्यवस्था छिन्न भिन्न हो चुकी है। अपराधों के ग्राफ में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। जिसका कारण पुलिस के पास पर्याप्त बल न होना है। प्रदेश के सभी थाना,कोतवाली,चौकियां बल की कमी से जूझ रही है। दूसरी तरफ अवैध शराब के निर्माण, तस्करी को रोकने की जिम्मेवारी भी पुलिस पर थोप दी गई है। जब आबकारी विभाग अलग ही है तो शराब,गांजा आदि पर नियंत्रण,धर,पकड़ भी आबकारी विभाग की जिम्मेवारी होनी चाहिए। आबकारी अमले के कर्मचारी उड़नदस्ते के कार्यालय में धूम्रपान करते,पत्ते खेलते आसानी से देखे जा सकते है। ऐसा कौन सा गांव,कौन सा मोहल्ला,पारा,पान दुकान,गुमटियां,ढाबे आदि होंगे जहां से शराब,गांजा बिकने की खबर आबकारी अमले के पास नही होगी परन्तु कार्रवाई करने से इसलिए पीछे हटते है कि सब जगहो से महीना बंधा हुआ है एवं कागजी लिखापढ़ी की जहमत भी नही उठाना चाहते है। गांजा प्रकरण में इतनी लिखापढ़ी करनी पड़ती है। जितनी पढ़ाई शायद विभाग में भर्ती हुए कर्मचारीयो ने न पढ़ी हो।
अवैध शराब,गांजा की रोकथाम के लिए आबकारी विभाग में अलग से नियुक्तियां की जानी चाहिए। ठीक उसी तर्ज पर जिस तर्ज पर शराब के ठेकेदार लठैतों को नौकरी पर रखते थे। जिसके लिए बाकायदा गद्दीदार प्रथा होती है एवं पंजाब,हरियाणा,बंगाल,बिहार,महाराष्ट्र,उत्तरप्रदेश,ओड़िसा से लठैतो को रखा जाता है। जो पूरे क्षेत्र में घूम घूम कर शराब कोचियों पर आतंक कायम रखते है।चार पहिया,दो पहिया,एवं पैदल हांथो में लाठी एवं टार्च थामे सर्चिंग करते है।
पुलिस को मिल गया लठैतों का कार्य—– अपराध एवं अपराधियो,गुंडे,मवालियों,चोर,उच्चको,पाकिटमारो,दादा,भैया,चोरी,डकैती,छीनतई आदि पर लगाम कसने वाली पुलिस को आम जनमानस शराब पकड़ने वाली पुलिस समझने लगे है। छेड़छाड़, दुष्कर्म, जुआ,सट्टा,देहव्यापार की बढ़ोतरी होने का कारण भी शायद पुलिस को मार्ग भटका कर,शराब की दिशा में मोड़ देने का कारण हो सकता है। जो कार्य पहले शराब भठ्ठी के गुंडे करते थे।उसे करने की जिम्मेवारी सरकार ने पुलिस को सौप दी है।
क्यों न आबकारी विभाग को पुलिस विभाग में विलय कर दिया जाये ? जब आबकारी अधिनियम की सारी कार्यवाही पुलिस विभाग ही करता है तो क्यो न आबकारी विभाग को पुलिस विभाग में विलय कर दिया जाए। जिससे आबकारी विभाग में मुफ्त की तनख्वाह पाने वालो से भी निजात मिल जाये। आबकारी विभाग को केवल मनोरंजन शुल्क,केबल शुल्क वसूली की ही जिम्मेदारी दे देनी चाहिए। सर्कस,मीनाबाजार,पार्क,टाकिजों, आदि से मनोरंजन शुल्क वसूल कर सरकार का खजाना भरा जाना चाहिए।