@टिल्लू शर्मा◾टूटी कलम◾डॉट कॉम#….रायगढ़…..यह अकाट्य सत्य है कि बिना रोये तो बच्चे को मां भी दूध नही पिलाती, बगैर लड़े जंग नही जीती जा सकती,बगैर विरोध किये मांग पूरी नही की जा सकती अगर आप गलतफहमी में जीवन गुजार रहे है कि सब अपने है शुभचिंतक है,सम्मानीय है,आदरणीय है तो इस गलतफहमी को दूर करने का सहज उपाय है कि आप वेब पोर्टल या अखबार के एडिटर बन कर समाचारो की दुनिया से जुड़ जाइये। सभी यह चाहेंगे कि आप उनके पक्ष एवँ हित मे समाचार प्रकाशित करते रहे ताकि लोग उनको अच्छा समझने लगे एवं उनकी साख बरकरार रहे परन्तु जब कभी आप उनसे सहयोग की अपेक्षा कर 26 जनवरी,15 अगस्त, दीपावली की शुभकामना संदेश प्रकाशित कर बिल भेज कर आजमा सकते है। टूटी कलम
सारा भ्रम काफूर हो जाएगा आपके अपने समझे जाने वाले इस तरह से रियेक्ट करेंगे मानो आपने विज्ञापन के माध्यम से उनकी पब्लिसिटी न कर भैंस खोलकर ले गए हो,कौन बोला था,किसने दिया था,हम तो बोले ही नही थे,अपनी मर्जी से क्यो छाप दिए। अरे भइये अखबार हमारा है,वेब पोर्टल हमारा है। जब हम विज्ञापन बगैर पूछे छाप सकते है तो समाचार छापने के लिए आपसे इजाजत लेने की आवश्यकता नही समझते। अब समाचार आपकी साख को बढ़ाने वाला हो या की आपके कारनामो को उजागर करने वाला हो यह कलम की धार पर निर्भर करता है। लेखनी में दम होना चाहिए और लोगो को विश्वास होना चाहिए कि जिसे पढ़कर लोगो को सत्यता लगे। वैसे गली गली बैग लटकाए छोटे पेट वाले पत्रकार कहलाने वालो की छवि आम होती है। जिन्हें लोग पत्रकार कम वसुलीबाज ज्यादा समझते है। टूटी कलम
और ज्यादा आजमाना हो तो आप अपने शुभचिंतकों,मित्र,हितैषी,रिश्तेदारों को कभी अपने प्रेस कार्यालय आने के लिए आमंत्रित कर देखे। आप पाएंगे कि 100 में से 5 लोग ही बेमन से आयेंगे क्यूंकि आमंत्रित लोगो को गलतफहमी सी होती है कि प्रेस कार्यालय जाने पर कुछ रकम खर्च हो सकती है या विज्ञापन के नाम पर जेब ढीली हो सकती है। इसलिए कलम में धार तेज करते रहना चाहिए पक्ष, विपक्ष सभी समाचारो को बेबाकी से प्रकाशित करते रहना चाहिये भले ही विज्ञापन का सहयोग मिले या न मिले। टूटी कलम