🔥 टिल्लू शर्मा ✒️टूटी कलम रायगढ़ छत्तीसगढ़ आज मेरी कलम एक ऐसे ब्राह्मण इंसान के ऊपर चल रही है जो कि संघर्षों के साए में पलकर बड़ा हुआ। जी हां हम बात कर रहे हैं रायगढ़ के बहुमुखी प्रतिभा के धनी ब्राह्मण युवा भारत भूषण शास्त्री की। जिनके पिता रूद्र प्रसाद मिश्रा फ़ूड कारपोरेशन इंडिया रायगढ़ में कार्य करते हुए रिटायर हुए किंतु ईमानदार इंसान भ्रष्टाचार के इतने बड़े विभाग से ईमानदारी के अतिरिक्त और कुछ नहीं कमा पाए। यदि इनके स्थान पर अन्य कोई व्यक्ति रहता तो उसके पास शहर की किसी कॉलोनी में स्वयं का आलीशान घर, लग्जरी कारें, बैंक बैलेंस, स्वर्णाभूषण, विलासिता के सभी साधन उपलब्ध रहते। इनकी ईमानदारी की वजह से बच्चे भी कोई ज्यादा खास तरक्की नहीं कर पाए और ना ज्यादा पढ़ पाए। आइए बात करते हैं रूद्र प्रसाद मिश्रा के पुत्र भारत भूषण शास्त्री की जो अपने संतानों के भविष्य के लिए काफी उठापटक कर रहे हैं।
पिता के सरकारी सर्विस में कार्यरत होने की वजह से भारत भूषण का ध्यान पढ़ाई लिखाई में ना लगकर नेतागिरी की ओर ज्यादा ध्यान लगता था। नेतागिरी में हासिल पाई शून्य मिलने के बाद भारत का ध्यान पूजा-पाठ धर्म कर्म की ओर हो गया। जिसके लिए इन्होंने काली निकेतन में अपना ज्यादा समय व्यतीत करना शुरू किया और वही से इन्होंने पूजा, पाठ, आरती, हवन, रुद्राभिषेक सत्यनारायण कथा आदि करने की विधि एवं शिक्षा प्राप्त की। जिसके बाद लोगों के बुलावे पर ये धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण करवाने जाने लगे। मगर इस कार्य से इतनी आमदनी नहीं होती थी की घर परिवार का पालन पोषण किया जा सके जिस वजह से इन्होंने आर्केस्ट्रा पार्टी की ओर रुख कर आवाज के सहारे अपनी पहचान बनाने एवं कमाई करने का साधन बना लिया परंतु आर्केस्ट्रा पार्टियों के दूरदिनों के कारण इसमें भी सफलता प्राप्त नहीं हुई। इन्होंने युवा संकल्प संगठन का सदस्य बनकर जन समस्या उठाने में अपने कदम आगे बढ़ाएं। समय के साथ साथ युवा संकल्प संगठन में भी कई संगठन को अलग-अलग व्यक्ति के रूप में जाना पहचाना जाने लगा। भारत भूषण के द्वारा पूर्व विधायक प्रत्याशी भरत दुबे के यहां कार्य करना शुरू कर दिया गया। जहां पर भारत भूषण के द्वारा अपने समाज का होने की वजह से भारत दुबे इमानदारी से कार्य किया जाने लगा। आप पार्टी से असंतुष्ट होकर इन्होंने पंडित रवि भूषण शास्त्री लक्ष्मी मंदिर वाले का साथ पकड़ लिया जो ज्यादा दिन तक नहीं चल पाया।
इन दिनों भारत भूषण शास्त्री स्वयं को कथावाचक के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं शास्त्री का अर्थ शास्त्रों का ज्ञाता होता है। कछवाह परिवार के द्वारा आयोजित भागवत ज्ञान सप्ताह के कार्यक्रम में भारत भूषण शास्त्री को कथावाचक के रूप में नगर वासियों ने देखा और सुना है। जिस कथा को बांचने के लिए धनाढ्य लोगों के द्वारा इलाहाबाद बनारस आदि से लाखों रुपए दे कर कथावाचक बुलाए जाते हैं उनमें से अधिकतर ब्राह्मण नहीं हुआ करते हैं और यदि ब्राह्मण के श्री मुख से कथा, आरती, हवन ना सुना जाए तो वह उतना फलकारी नहीं होता है। यह देखा गया है कि जो जितना ज्यादा धन लेकर कथा वाचन करता है वह अपनी कथा के दौरान उतनी ही नाटक नौटंकी ही करता है और अंत में आसाराम, राम रहीम बन जाता है। जो कथा भारत भूषण शास्त्री कम मेहनताना लेकर सुनाता है वही कथा बाहर से आकर कथावाचक लाखों रुपए, लेकर स्वागत – सत्कार करवा कर, लजीज भोजन, दूध दही खा, फल फ्रूट, मेवा मिश्री खा पीकर चले जाया करते हैं।