🌀 टिल्लू शर्मा ✒️टूटी कलम रायगढ़ … इन दिनों सोशल मीडिया पर द्रौपदी से ज्यादा चीर हरण मीडिया एवं पत्रकारिता का किया जा रहा है। जिसकी मर्जी में जो आ रहा है वह मीडिया के विषय में पत्रकारों के विषय में कुछ भी लिख देता है। जिसका एकमात्र कारण गिरती हुई पत्रकारिता का स्तर है। जिन लोगों लिखना, पढ़ना, बोलना, चलना, खड़े होना, बात करने का सलीका ना आता हो। ऐसे लोग भी आजकल माइक,आई डी थामे मंदिरों में नहीं लेकिन शहर के सभी थानों में ( बेवजह चक्कर काटते अवश्य दिख जाया करते हैं। जिनका मकसद मात्र यह होता है कि थानेदार,मुंशी, आरक्षक उसको पहचानने लग जाए ताकि वह किसी भी तरह का अवैध कार्य को अंजाम दे सके. धरना, प्रदर्शन,रैली,आंदोलन,मेला, भीड़भाड़ वाली जगहो में टांगों के नीचे से घुसकर आगे निकलने में इनको महारत प्राप्त होती है. माइक आईडी की धौंस पर ये किसी भी जन समुदाय में घुस जाया करते हैं। फोकले, टूटे-फूटे, किसी कार्य के काबिल नहीं रहे माइक को आगे रखकर साक्षात्कार बाइट ली जाती है। जिसे प्रसारित होते ना कभी देखा एवं सुना जाता है। बाइट लेने के बाद समाचार भी बनाया जाना चाहिए जो की इनके लिए काला अक्षर भैंस के समान होता है. किसी नेता, राजनीति पार्टी का समाचार प्रसारित करना होता है तो ऐसे लोगों को पहले लिखी लिखाई स्क्रिप्ट तैयार करके देनी पड़ती है। तब कहीं जाकर उसकी कॉपी पेस्ट कर समाचार के रूप में वायरल किया जाता है और उसके एवज में 200, 500 रुपए का मेहनताना वसूला जाता है।
शहर केअनेकों पढ़े लिखे बुद्धिजीवियों ने दुखी होते हुए बताया कि, अब पहले जैसी पत्रकारिता और पत्रकार नहीं रह गए हैं। घर के सबसे निकम्में, अनपढ़,आवारा,बेकार,बेरोजगार अर्ध शिक्षित,अल्पज्ञानी, छोटे बड़ों का लिहाज न करने वाले इन दिनों तीन,चार हजार खर्च कर अपना वेब पोर्टल न्यूज़ बना लेते हैं और व्यवसाईयो,ठेकेदारों,अधिकारियों आदि को उनके खिलाफ समाचार प्रसारित करने की धमकी, चमकी देकर उगाही, वसूली करने लगे हैं। इन वेव पोर्टल वालों का मकसद केवल इतना रहता है कि थाने के छोटे से छोटे आरक्षक से लेकर थानेदार तक के पद के अधिकारी उनको जानने एवं पहचाने लग जाए ताकि आम जनता के विवाद को आपसी समझौता करवाने के नाम पर कुछ वसूली की जा सके। कुछ पोर्टल वाले अघोषित रूप से पुलिस विभाग के मीडिया पोर्टल बने हुए हैं। जिनकी उंगलियां फोन पर टिके रहती है उधर से पुलिस के पी आर ओ का डी एस आर समाचार आया और इधर इन लोगों के द्वारा तुरंत वायरल कर स्वयं को पुलिस का नमक हलाल बतलाने का प्रयास किया जाता है।
कुछ लोगों के द्वारा स्वयं को बड़े बैनर के अखबारों में कई वर्षों तक कार्य करना बतलाया जाता है एवं स्वयं को वरिष्ठ कहलाने में भी संकोच नहीं किया जाता हैं। जबकि हकीकत यह है कि वरिष्ठ पत्रकारों के द्वारा भी स्वयं का वेब पोर्टल बनाकर दूसरों के समाचारों को काफी पेस्ट कर प्रसारित किया जाता है। अपनी कलम अपने दिमाग से समाचार लिखने का हुनर शहर के कुछ जीने चुने पत्रकारों के पास ही है।
वेब पोर्टल के माध्यम से किसी के विषय में कुछ भी लिखवाया जा सकता है। ऐसे समाचारों की कोई विश्वसनीयता नहीं रहती है। वेब पोर्टल वाले किसी को भी टिकट दे सकते हैं और किसी की भी टिकट काट सकते हैं। ये किसी को भी हरा सकते हैं एवं किसी को भी जीता सकते हैं। जिसके लिए कुछ खर्च पानी देना पड़ता है। हजार दो हजार मिलने के बाद ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खरसिया से चुनाव लड़ने की संभावना व्यक्त करने वाले समाचार भी प्रसारित कर सकते हैं